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पदार्थ विज्ञान सम्पूर्ण स्वज्ञेय सिद्ध नहीं होता। एक अंश को निकाल देने से आत्मा ही सिद्ध नहीं होगा और यदि उस विकार के उत्पाद को अंश का (पर्याय) न मानकर द्रव्य ही माना जाये तो सम्पूर्ण द्रव्य ही विकारमय हो जायेगा; इसलिए विकाररहित स्वभाव है वह स्वज्ञेय रूप से नहीं रहेगा और विकार दूर होकर अविकारीपना भी नहीं हो सकेगा।
उत्पाद, व्यय, ध्रुवपर्याय रूप होते हैं, पर्याय द्रव्य में होती है। इसप्रकार सबको एक द्रव्य में ही समा दिया है। ___ घट, पिण्ड और मिट्टीपना - इन तीनों अंशों के समुदायस्वरूप मिट्टी है। इन तीनों अंशों के बिना मिट्टी सिद्ध नहीं हो सकती। उसमें उत्पाद घट के आश्रय से है और ध्रुवता मिट्टीपने के आश्रय से है तथा घट, पिण्ड और मिट्टीपना ये तीनों अंश मिट्टी के आश्रय से हैं। इसप्रकार एक मिट्टी में सब समा जाते हैं।
प्रश्न :- जीव में जो रागादि उदयभाव होते हैं वे किसके हैं? द्रव्य के, पर्याय के या पर के?
उत्तर :- वे उदयभाव पर के नहीं हैं, द्रव्य के भी नहीं हैं; किन्तु वे आत्मा की उस समय की पर्याय (अंश) के हैं। उदयभाव स्वज्ञेय की पर्याय हैं।
उत्पाद, व्यय, ध्रुव - तीनों एक साथ हैं; यह बात १००वीं गाथा में सिद्ध की है। यहाँ १०१वीं गाथा में यह कह रहे हैं कि उत्पाद, व्यय, ध्रुव अंश (पर्याय) हैं और वे पर्यायें (अंश) द्रव्य की हैं। ऐसा कहकर उन तीनों को एक द्रव्य में ही समा दिया है।
किसी एक भाव का उत्पाद होने से सम्पूर्ण द्रव्य ही नाश को प्राप्त नहीं होता, किन्तु वही पर्याय नष्ट होती है, और वह पर्याय द्रव्य के आश्रित है। परिणामों के प्रवाह में ध्रुवता रूप से द्रव्य ही ध्रुव नहीं है, किन्तु अंश की
प्रवचनसार-गाथा १०१ अपेक्षा से ध्रुवता है, ध्रुवता भी द्रव्य का एक अंश है, सम्पूर्ण द्रव्य नहीं है, किन्तु वह ध्रुव अंश द्रव्य के आश्रय से है।
इसप्रकार उत्पाद, व्यय और ध्रुव अंश हैं और उन अंशों का समूह द्रव्य है। इसप्रकार "द्रव्य" में सब समा जाते हैं।
उत्पाद, व्यय और ध्रुव द्रव्य के आश्रय से नहीं हैं अर्थात् द्रव्य के ही उत्पाद, व्यय या ध्रुव नहीं हैं, परन्तु पर्याय के हैं, और वे पर्यायें द्रव्य की हैं। उत्पाद, व्यय अथवा ध्रुव में से किसी एक में ही सम्पूर्ण द्रव्य का समावेश नहीं हो जाता, किन्तु वे तो एक-एक पर्याय रूप हैं। उत्पाद सम्पूर्ण द्रव्य को नहीं बतलाता, किन्तु उत्पन्न होनेवाली पर्याय को बतलाता है, व्यय भी सम्पूर्ण द्रव्य को नहीं बतलाता, किन्तु पूर्व पर्याय को बतलाता है, तथा ध्रुव भी सम्पूर्ण द्रव्य को नहीं बतलाता, किन्तु वह पर्याय को (अंश को) ही बतलाता है। इसप्रकार वे प्रत्येक एक-एक पर्याय को बतलाते हैं और उन तीनों पर्यायों का समूह द्रव्य को बतलाता है, द्रव्य पर्यायों के समूहरूप है।
किसी भी द्रव्य का कोई भी एक समय लो तो उसमें उत्पाद, व्यय और ध्रुव - तीनों एक साथ पर्यायों के आश्रय से हैं। मात्र उत्पाद में, व्यय में, या ध्रुव में सम्पूर्ण द्रव्य आ जाता है, इसलिये वे द्रव्य के आश्रय से नहीं, किन्तु पर्यायों के आश्रय से हैं - ऐसा कहा है। उत्पादधर्म किसी पर्याय के आश्रय से है, व्ययधर्म भी किसी पर्याय के आश्रय से है और ध्रौव्यत्वरूप धर्म भी किसी पर्याय (अंश) के आश्रय से है, इसलिये उन्हें पर्यायों के धर्म कहे हैं, और पर्यायें द्रव्य के आश्रय से हैं। इसप्रकार अभेदरूप से द्रव्य में सब समा जाते हैं। ___ इसप्रकार उत्पाद, व्यय और ध्रुव अंशों के आश्रय से हैं और वे अंश द्रव्य का आलम्बन लेते हैं। उत्पाद भी अंश का है, व्यय भी अंश का है और ध्रुवता भी अंश की है, उस एक-एक अंश में सम्पूर्ण वस्तु नहीं समा