Book Title: Padartha Vigyan
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 44
________________ पदार्थ विज्ञान श्रत नहीं है, किन्तु पूर्वपर्याय के आश्रित ही है। इसप्रकार पर्यायें स्वयं ही उत्पाद-व्यय-ध्रुव का आश्रय हैं। प्रश्न :- यदि अंश का उत्पाद न मानकर द्रव्य का ही उत्पाद माना जाये तो क्या दोष है? ७८ उत्तर :- यदि द्रव्य का ही उत्पाद माना जाये तो क्षणिक पर्याय ही द्रव्य हो जायेगी और प्रतिक्षण नवीन-नवीन द्रव्य ही उत्पन्न होने लगेगा । द्रव्य को अनन्त पर्यायों में से प्रत्येक पर्याय स्वयं द्रव्य हो जायेगी इसलिए एक द्रव्य को ही अनन्त द्रव्यपना आयेगा अथवा तो वस्तु के बिना असत् काही उत्पाद होने लगेगा। मिट्टी में घट अवस्था उत्पन्न होती है, किन्तु मिट्टी स्वयं उत्पन्न नहीं होती, उसीप्रकार वस्तु में उसके नवीन परिणाम उत्पन्न होते हैं, किन्तु वस्तु स्वयं उत्पन्न नहीं होती। एक अंश के उत्पाद को ही यदि द्रव्य माना जाये तो एक पर्याय स्वयं ही सम्पूर्ण हो जायेगी, इसलिये द्रव्य की अनन्त पर्यायें ही अनंत द्रव्य हो जायेंगे। इसप्रकार एक द्रव्य को ही अनंत द्रव्यपना हो जायेगा यह दोष आता है। हाँ, एक द्रव्य अनंत गुण होते हैं और एक द्रव्य की अनंत पर्यायें भी होती है, किन्तु स्वयं द्रव्य नवीन उत्पन्न नहीं होता। यदि द्रव्य स्वयं उत्पन्न हो तो असत् की ही उत्पत्ति होगी। इसप्रकार द्रव्य का ही उत्पाद मानने में दो दोष आते हैं। प्रथम तो, एक ही द्रव्य अनन्त द्रव्यरूप हो जायेगा, और दूसरे, असत् की ही उत्पत्ति होगी। इसलिये उत्पाद द्रव्य का ही नहीं है, किन्तु उत्पन्न होने वाले भाव का है और उस उत्पन्न होनेवाले भावरूप अंश द्रव्य का है। प्रश्न :- यदि सम्पूर्ण द्रव्य को ही ध्रुव माना जाये तो क्या दोष आयेगा ? उत्तर :- - यदि सम्पूर्ण द्रव्य को ही ध्रुव मान लिया जाये तो क्रमशः होनेवाले उत्पाद - व्यय भावों के बिना द्रव्य का ही अभाव हो जायेगा, 44 प्रवचनसार-गाथा १०१ ७९ अथवा द्रव्य को क्षणिकपना हो जायेगा। वस्तु मात्र ध्रुवरूप नहीं है, किन्तु उत्पाद-व्यय-ध्रुवरूप है, उसके बदले मात्र ध्रुव अंश को ही वस्तु मान लिया और अंशी को नहीं माना तो द्रव्य क्षणिक हो जायेगा। इसलिये वस्तु ही ध्रुव नहीं है, किन्तु वस्तु का एक अंश ध्रुव है। एक ही समय में उत्पाद-व्यय होते हैं, किन्तु वे उत्पाद-व्यय एक ही समय की पर्याय के नहीं हैं। एक समय में उत्पाद वर्तमान पर्याय का है। और व्यय पूर्व पर्याय का है। एक ही समय में जिसका व्यय है उसका उत्पाद नहीं है और जिसका उत्पाद है उसका व्यय नहीं है। उत्पाद से आलंबित पृथक् पर्याय है और व्यय से आलंबित पृथक् पर्याय है, किन्तु उस उत्पाद व्यय दोनों का काल एक ही है। जिससमय जिस पर्याय का व्यय है उस समय उस पर्याय का उत्पाद नहीं है और जिस समय जिस पर्याय का उत्पाद, दूसरी का व्यय और तीसरी का उत्पाद - इसप्रकार होने से वे क्रमशः होनेवाले भाव है। जब बीज का व्यय हो तब अंकुर का उत्पाद होता है, इसलिये बीज और अंकुर क्रमशः होनेवाले भाव हैं, उनके बिना वृक्ष की ध्रुवता नहीं रहती । उत्पाद-व्यय के बिना क्रमशः होनेवाले भाव नहीं बन सकते और क्रमशः होनेवाले भावों के बिना द्रव्य का अस्तित्व नहीं रह सकता। जिसने मात्र द्रव्य का ही ध्रुव मान लिया है। उसके द्रव्य में पूर्वपर्याय का व्यय और पीछे की पर्याय का उत्पाद - ऐसे क्रमशः होनेवाले भावों के बिना उसका ध्रुवतत्त्व कहाँ स्थिर रहेगा ? इसलिये उसे ध्रुव द्रव्य का ही अभाव हो जायेगा अथवा उसके मन में द्रव्य क्षणिक ही हो जायेगा। इसप्रकार द्रव्य का ही ध्रुव मानने में भी दोष आता है। ध्रुवता द्रव्य की ही नहीं है; किन्तु द्रव्य के स्थायी अंश की है। उत्पाद, व्यय और ध्रुव - यह तीनों एक साथ हैं, किन्तु वे अंशों के हैं, द्रव्य के नहीं।

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