Book Title: Padartha Vigyan
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 40
________________ ७१ प्रवचनसार-गाथा १०१ उप्पादट्ठदिभंगा विज्जंते पज्जएसु पज्जाण । दव्वे हि संति णियदं तम्हा दव्वं हवदि सव्वं ।। उत्पादस्थितिभङ्गा विद्यन्ते पर्यायेषु पर्यायाः । द्रव्ये हि सन्ति नियतं तस्माद् द्रव्यं भवति सर्वम् ।। अन्वयार्थ :- (उत्पादस्थितिभंगाः) उत्पाद, ध्रौव्य और व्यय (पर्यायेषु) पर्यायों में (विद्यन्ते) वर्तते हैं; (पर्यायः) पर्यायें (नियतं) नियम से (द्रव्ये हि सन्ति) द्रव्य में होती हैं, (तस्मात्) इसलिये (सर्व) वे सब (द्रव्यं भवति) द्रव्य हैं। टीका :- उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य वास्तव में पर्यायों का अवलम्बन करते हैं, और वे पर्यायें द्रव्य का आलम्बन करती हैं अर्थात् उत्पाद-व्ययध्रौव्य पर्यायों के आश्रय से हैं और पर्यायें द्रव्य के आश्रय से हैं, इसलिये यह सब एक ही द्रव्य हैं, द्रव्यान्तर नहीं। प्रथम तो द्रव्य पर्यायों के द्वारा अवलम्बित है (अर्थात् पर्यायें द्रव्याश्रित हैं) क्योंकि समुदायों समुदायस्वरूप होता है, वृक्ष की भाँति । जैसे समुदायी वृक्ष स्कंध, मूल और शाखाओं का समुदायस्वरूप होने से स्कंध, मूल और शाखाओं से आलम्बित होकर दिखाई देता है; इसी प्रकार समुदायी द्रव्य पर्यायों का समुदायस्वरूप होने से पर्यायों के द्वारा आलम्बित होकर भासित होता है। जैसे स्कंध, मूल, शाखायें वृक्षाश्रित ही हैं, वृक्ष से भिन्न पदार्थरूप नहीं हैं; उसीप्रकार पर्यायें द्रव्याश्रित ही हैं, द्रव्य से भिन्न पदार्थरूप नहीं हैं। और पर्यायें उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य के द्वारा आलम्बित हैं अर्थात् उत्पादव्यय-ध्रौव्य पर्यायाश्रित हैं; क्योंकि उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य अंशों के धर्म हैं, अंशी के नहीं; बीज, अंकुर और वृक्षत्व की भाँति । जैसे अंशी वृक्ष के बीज, अंकुर-वृक्षत्वस्वरूप तीन अंश, व्यय-उत्पाद-ध्रौव्यस्वरूप निज धर्मों से आलम्बित एक साथ ही भासित होते हैं; उसी प्रकार अंशी द्रव्य के नष्ट होता हुआ भाव, उत्पन्न होता हुआ भाव और अवस्थित रहने वाला भाव - ये तीनों अंश व्यय-उत्पाद-ध्रौव्यस्वरूप निजधर्मों के द्वारा आलम्बित एक साथ ही भासित होते हैं, किन्तु यदि (१) भंग (२) उत्पाद और (३) ध्रौव्य को अंशी का न मानकर द्रव्य का ही माना जाये तो सारा विप्लव को प्राप्त होगा। यथा - (१) पहले यदि द्रव्य का ही भंग माना जाये तो क्षणभंग से लक्षित समस्त द्रव्यों का एक क्षण में ही संहार हो जाने से द्रव्यशून्यता आ जाएगी अथवा सत् का उच्छेद हो जायेगा (२) यदि द्रव्य का ही उत्पाद माना जाये तो समय-समय पर होनेवाले उत्पाद के द्वारा चिह्नित, ऐसे द्रव्यों को प्रत्येक को अनन्तता आ जायेगी। अर्थात् समय-समय पर होनेवाला उत्पाद जिसका चिह्न हो ऐसा प्रत्येक द्रव्य अनन्तद्रव्यत्व को प्राप्त हो जायेगा अथवा असत् का उत्पाद हो जायेगा (३) यदि द्रव्य का ही ध्रौव्य माना जाये तो क्रमशः होनेवाले भावों के अभाव के कारण द्रव्य का अभाव हो आयेगा अथवा क्षणिकपना होगा। इसलिए उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य के द्वारा पर्यायें आलम्बित हों और पर्यायों के द्वारा द्रव्य आलम्बित हों कि जिससे यह सब एक ही द्रव्य हैं। ___ भावार्थ :- बीज, अंकुर और वृक्षत्व, यह वृक्ष के अंश हैं। बीज का नाश, अंकुर का उत्पाद और वृक्षत्व का ध्रौव्य-तीनों एक साथ ही होते हैं। इसप्रकार नाश बीज के आश्रित हैं, उत्पाद अंकुर के आश्रित है, और ध्रौव्य वृक्षत्व के आश्रित है, नाश, उत्पाद और ध्रौव्य, बीज, अंकुर और वृक्षत्व; वृक्ष से भिन्न पदार्थरूप नहीं हैं। इसलिये ये सब एक वृक्ष ही हैं। इसीप्रकार नष्ट होता हुआ भाव, उत्पन्न होता हुआ भाव और ध्रौव्य भाव; सब द्रव्य के अंश हैं। नष्ट होते हुए भाव का नाश, उत्पन्न होते हुए भाव का उत्पाद और स्थायी भाव का ध्रौव्य एक ही साथ हैं। इसप्रकार

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