Book Title: Padartha Vigyan
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 35
________________ ६० पदार्थ विज्ञान प्रवचनसार-गाथा १०० ६१ वस्तु का स्वभाव है। ९९वीं गाथा में 'द्रव्य उत्पाद-व्यय-ध्रुववाला है' यह सिद्ध किया गया था और इस १००वीं गाथा में अधिक स्पष्टता करके द्रव्य के उत्पाद-व्यय-ध्रुव को एकमात्र बतलाते हैं। यदि उत्पाद व्यय ध्रुव को एकसाथ ही या एक ही न मानें तो वस्तु ही सिद्ध नहीं होती। प्रश्न :- कोई मात्र उत्पाद को ही माने, और उसके साथ ही व्यय तथा ध्रुव को न माने तो क्या होगा? उत्तर :- पिण्ड का अभाव घड़े का उत्पादन कारण है, उस उत्पादनकारण बिना घड़े को उत्पत्ति ही नहीं होगी। अथवा तो ध्रुव मिट्टी के बिना ही घड़ा उत्पन्न होने लगेगा। आत्मा में सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति चेतना की नित्यता के आधार बिना और मिथ्यात्व के व्यय बिना नहीं हो सकती। परपदार्थ की रुचिरूप पूर्व की मिथ्याभ्रान्ति का नाश हुए बिना सम्यक्त्व की उत्पत्ति को ढूँढें तो वह नहीं मिलेगी और ध्रुव आत्मा के अवलम्बन बिना भी सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं होगा। सम्यक्त्व की उत्पत्ति के साथ ही आत्मा की ध्रुवता और मिथ्यात्व का व्यय होता है। इन दोनों को माने बिना सम्यक्त्व का उत्पाद सिद्ध नहीं होता। मिट्टी मिट्टीपने की ध्रुवता और पिण्ड अवस्था के व्यय बिना घड़े की उत्पत्ति सिद्ध नहीं होता। और यदि जगत् में घड़े रूप में भाव की उत्पत्ति न हो तो जगत् में सम्यक्त्व, सिद्धदशा आदि किन्हीं भावों की उत्पत्ति ही न हो। और यदि मिट्टी के बिना ही घड़ा हो तो आकाशकुसुम भी हो, अर्थात् वस्तु के अस्तित्व बिना अधर से ही नवीन-नवीन भाव उत्पन्न होने लगे, आत्मा के बिना ही सम्यक्त्व उत्पन्न हो - इसप्रकार महान दोष आता है। आत्मा की ध्रुवता के अवलम्बन बिना कभी सम्यक्त्व की उत्पत्ति नहीं होती। पर से लाभ होगा - ऐसी जो मिथ्यारुचि है, उस परसन्मुख रुचि के अभाव के बिना और स्वद्रव्य की ध्रुवता के अवलम्बन बिना सम्यक्त्व की उत्पत्ति नहीं हो सकती। इसीप्रकार सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति के सम्बन्ध में भी ऐसा समझना कि ध्रुव ज्ञानानन्द आत्मा के अवलम्बन से और अज्ञान के व्यय से सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति होती है। ध्रुव चैतन्य बिना और अज्ञान के व्यय के बिना सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति ढूँढें तो वह नहीं मिलेगी तथा इसीप्रकार चारित्र की उत्पत्ति के सम्बन्ध में समझना कि बाह्य क्रिया में या शरीर की नग्न अवस्था में आत्मा का चारित्र नहीं है। चारित्र अर्थात् आत्मा की वीतराग पर्याय राग के अभाव से और ध्रुव चिदानन्द आत्मा के अवलम्बन से उत्पन्न होती है, महाव्रतादि के राग से उत्पन्न नहीं होती। ध्रुवता का अवलम्बन और राग का अभाव - इन दोनों के बिना वीतराग भाव की उत्पत्ति नहीं हो सकती। इसीप्रकार केवलज्ञान की उत्पत्ति ध्रुव चैतन्यस्वभाव के अवलम्बन बिना और पूर्व की अपूर्ण ज्ञानदशा के व्यय बिना नहीं होती। आत्मा की ध्रुवता रहकर और अल्पज्ञता का व्यय होकर पूर्णज्ञान की उत्पत्ति होती है। अन्तिम सिद्धदशा भी आत्मा की ध्रुवता और संसारदशा का व्यय सहित ही होती है। इसमें ध्रुवता सद्भावसाधन है और व्यय अभावसाधन है।। उपर्युक्त दृष्टान्तों के अनुसार जगत् के जड़ या चेतन समस्त भावों के उत्पाद में समझना। किसी भी भाव का उत्पाद वस्तु को ध्रुवता के बिना और पूर्व भावों के व्यय बिना नहीं होता। ___ यदि मिट्टी के बिना ही घड़ा उत्पन्न होने लगे तब तो आकाशकुसुम की भाँति वस्तु के बिना ही जगत् में अवस्थाएँ होने लगेंगी। जिसप्रकार आकाश के फूल नहीं हैं, उसीप्रकार ध्रुवस्वभाव के बिना पर्याय का उत्पाद नहीं होता। ध्रुव आत्मा के अवलम्बन बिना सम्यक्त्वपर्याय का उत्पाद नहीं हो सकता। जगत् में यदि खरगोश के सींग हों, कछुए के बाल हों या आकाश के फूल हों तो ध्रुव के अवलम्बन बिना सम्यक्त्व हो।

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