Book Title: Oswal Jati Ka Itihas
Author(s): Oswal History Publishing House
Publisher: Oswal History Publishing House

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Page 11
________________ सेठ राजमलजी ललवानी का संक्षिप्त जीवन-परिचय संसार के अंतर्गत कई व्यक्तियों का जीवन चरित्र इस प्रकार का होता है कि उसका विकास विपत्ति और सम्पत्ति के घात प्रतिघातों के अंतर्गत ही होता है। कई महापुरुषों की जीवनियों को देखने से इस बात का पता लगता है कि उनका जीवन चक्र अनेक टेढ़े मेढ़े रास्तों से होता हुआ परिवर्तन के प्रबल भंवरों में मँडराता हुआ उन्नति की ओर अग्रसर होता है। फिर भी यह एक अनूठा सत्य है कि इन सभी अनुकूल और विपरीत परिस्थितियों में भी उनके अंतर्गत जो प्राकृतिक विशेषताएं हैं. वे प्रकाश की तरह चमकती रहती हैं। , सेठ राजमलजी ललवाणी की जीवनी का जब हम बारीकी के साथ अध्ययन करते हैं, तो उसमें भी कई तत्व हमें इसी प्रकार के दृष्टिगोचर होते हैं। इनका जीवन भी कई प्रकार के घात प्रति घात और विपत्ति सम्पत्ति के दुर्धर्श चक्रों में घूमता हुआ आज की स्थिति में पहुंचा है। फिर भी हम देखते हैं कि जो प्राकृतिक विशेषताएं शुरू से इनके अन्दर थीं, वे आज भी उसी प्रकार बनी हुई हैं। आपका जन्म संवत् १९५१ की वैसाख सुदी ३ को आऊ (फलोदी) नामक ग्राम में हुआ। जिस घर में भाप पैदा हुए, वह बहुत साधारण स्थिति का घर था । खेती बाड़ी का काम होने की वजह से बाल्यकाल में आपको खेती और ऊँट की सवारी का बहुत काम पड़ता था। मगर बाल्यजीवन उस कठिन परिस्थिति में भी आपका उत्साह बड़ा प्रबल था। जब आप वर्ष के हए, जब अपने पिता के साथ खानदेश के मुड़ी नामक गाँव में भाये तब वहाँ मराठी की २ क्लास तक आपका शिक्षण हुआ। मगर इसी बीच आपके स्कूल जीवन में एक ऐसी विचित्र घटना घटी, जिससे आपके जीवन में एक बड़ा ही महत्व का परिवर्तन हुआ। आपका एक सहपाठी लड़कों से पैसे ठगने के लिये देवता को शरीर में लाने का ढोंग किया करता था। आप भी इस लड़के के चक्कर में आगये, और घर से पैसे ला ला कर उसे देने लगे। यह बात दैवयोग से भापके भाई को मालूम पड़ गई और एक दिन उन्होंने आपको जा पकड़ा, तथा खूब मारा। यह वहाँ से भागे, और घर न जाकर दूसरे गांव का रास्ता पकड़ लिया, उस समय केवल ११ वर्ष की अवस्था में किसमत पर भरोसा करके १५ कोस तक बराबर पैदल चले गये, और "वरुल भटाना" नामक गाँव में पहुँचे। उस गांव के नीमाजी नामक पटेल ने इनको आश्रय दिया, और वहीं पर दुकान कायम करने के लिये ५) कर्ज दिये। इन पाँच रुपयों से इन्होंने दूसरे बाजारों से सौदा लाकर इस बाजार में बेंचना शुरू किया। इससे गाँव वालों को

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