Book Title: Nyayaratna Darpan Author(s): Shantivijay Publisher: Bhikhchand Bhavaji Sakin View full book textPage 8
________________ न्यायरत्नदर्पण. आगे जहोरी दलिपसिंहजीने अपनी किताबके (३) पृष्टपर लिखा है. मुनिश्री शांतिविजयजी योग्य दलिपसिंह जहोरीकी वंदना अवधारियेगा. में आजदिन यहां श्रीवा० जयचंद्रजीगणीसे मिला तो उनोने कहा तुमारे सवालका जवाब मु० श्रीशांतिविजयजीने छपवाये है, तुम क्या उत्तर दिया. तो मेने कहा ऊनोने जो पाठ छापेमें लिखे है उनका प्रमाण पुछा है कि किस ठिकानेका है ? जवाब आनेके पीछे लिखुगा, उसपर ऊनोने कहा. क्या ! जवाब देयगे. इस छापेमें महान् अनर्थ किया है, तीर्थकरोके वचनोको उथापकर अपना और अपने रागी जीवोका संसार बढाया है, इस वास्ते उत्तरकी जगह वो तो मुख छिपावेगे. और तुम आनंद करो, जैसा कहकर बडी हंसी करी-सो कृपाकर जल्दी उत्तर दिजियेगा. (जवाब) जिनको सवालोका जवाब जल्दी लेना हो बजरीये छापेके मुजसे पुछे, मेरे लेखको पढकर कोई हंसी करे या आनंद मनावे ऊस बातसे में नाराज नही. मेरे लेखमें मेने कौनसा अनर्थ किया था? तीर्थंकर देवोके कौनसे वचन जथापन किये थे? वाचक-श्रीजयचंद्रजीगणिने बतलाया क्यों नही ? अबभी कोई बतलावे में जवाब दूंगा, मेरे लेख खिलाफ जैनशास्त्रके नहीं, इस लिये उनपर अमल करनेवालोको फायदा होना संभव है. जवाब देनेमें मेने मुख नही छिपाया है, देखिये ! यह किताब उसके जवाबमेंही लिखी गई है, इसपर जिसको जो कुछ लिखना हो. शौखसे लिखे, में जवाब दूंगा. धर्मकी पुख्तगीके लिये कोइ मिशाल दिइ जाय या दुसरा सवाल पेंश किया जाय जोकि उस बातसे संबंध राखता हो यह विषयांतर नहीं कहा जाता. दरअसल ! सत्यवक्ता सत्यको जाहिर करे. अकलमंदलोग सत्य बातको मंजुरही करते है.Page Navigation
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