Book Title: Nyayaratna Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Bhikhchand Bhavaji Sakin

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Page 14
________________ १२ न्यायरत्नदर्पण. कार कहते है, तैसेही बारां महिनोके उपरांत तेरहमे महिनेको गिनती में लेकर अभिवर्द्धित संवत्सर कहा है. ( जवाब ) में पेस्तर भी लिख चुका हूं कि यह अभिव र्द्धित संवत्सरका स्वरुप बयान किया है, मगर इसको चातुर्मासिक, वार्षिक और कल्याणिकपर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा गिनती में लो, जैसा इस पाठ कहांलिखा है, चर्चा किसवातपर चलतीथी, और ऊतारते हो - किसपर ? निशीथचूर्णि दशवैकालिकगृहद्वृति, और जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति पाठसे यह बात साबीत नही होती, अगर आप - लोग अधिक महिनेकों गिनतीमें लेना प्रमाण मानते हो, तो में इस किताबकी आदिमें पेस्तर लिख चुका हूं. दो आषाढ आवे जब पहेले आषाढमें चौमासा क्यों नही बेठाते ? दो आषाढमे दो चौमासिक प्रतिक्रमण क्यों नही करते ? दो श्रावण, या दो भादवे महिने आवे जब दोदफे पर्युषणपर्व तथा दोदके संवत्सरीक प्रतिक्रमण क्यों नही करते ? आपका अधिक महिना गिनती में जब प्रमाण हो कि दोदोदके उपर लिखे हुवे काम करे. और जब कोइ भी अधिक महिना आवे तो तीर्थकरोके कल्याणिक पर्वकी तिथिके व्रत नियम दो दो दफे क्यों नही करते ? ईसका कोई जवाब देवे . इससे साबीत हुवा कि आप लोगभी उपर लिखे हुवे कामोमें अधिक मास गिनतीमें नही लेते, अभिवर्धित संवत्सरको अगाडी लाकर कहदेते हो. देखो ! अधिक महिना गिनतीमे लिया है. में पूछता हुं फिर आपलोग व मुजब उपर लिखेके बर्ताव क्यों नही करते ? जो अधिक महिना चातुर्मासिक, वार्षिक और कल्याणि - पर्व तिथि रौ व्रत नियमकी अपेक्षा गिनती में नही लेना कहता हुं, सो कल्पसूत्र और समवायांगसूत्रके पाठसे कहता हुँ, सुनिये !

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