________________
न्यायरत्नदर्पण. ऊसपर अमल करेंगे. जो बात धर्मशास्त्रोमे लिखी होगी वही काविलमंजुर करनेके होगी. दरअसल! किसी जैनागममें जैनमुनिको व्याख्यानके वख्त या तमामदिन मुखपर मुखपत्रिका बांधना नही लिखा, अगर लिखा है तो कोईपाठ बतलावे, मेने कईदफे जैनअखबारोमें इसके बारेमें लेख दिये, मगर किसी जैनने जवाब नहीं दिया. औधनियुक्तिशास्त्रमे साफ लिखाहैकि जैनमुनि मुखवत्रिका मुखके आगे रखे. याते कोई रज रेणुं या जंतु मुखमें न आनगिरे, शास्त्रवाचतेवख्त अपने मुखका थुक शास्त्रपर न गिरे, शिवाय इसके दुसरा कोई सबब नही. ... आगे इसी छठे सवालमें जहोरी दलिपसिंहजीने लिखा है:
आपके गुरुमहाराजश्री आत्मारामजीने अज्ञानतिमिरभास्करके पृष्ट (३२०)में यह गाथा लिखी है. .. छठठमदसमदुवालसेहिं मासद्धमास खमणेहिं, .... अकरंतो गुरुवयणं अणंतसंसारिओ भणिओ..
· तो फिर आप व्याख्यानसमय मुहपत्ति बांधनेका निषेधकरके गुरुजन पूर्वाचार्योकी आशातनासे अनंतसंसारका कारण क्यों करते हो? • (जवाब ) व्याख्यानके वख्त मुहपर मुहपत्ति बांधना किसी जैनशास्त्रमें नही लिखा, और इसीलिये में निषेध करताहुँ, आप अगर इसका कोईपाठ बतलावे तो मेरा निषेधकरना बंद होसकता है, आचरणा परंपरा या रुढी तीर्थकरोके फरमानसे बडी नही महाराजश्री आत्मारामजी आनंदविजयजी साहबने अज्ञान तिमिरभास्कर ग्रंथके पृष्ट (३२०)पर जो गुरुकी आज्ञा न माने ऊसको अनंतसंसारी कहा, यह उसी गुरुकी अपेक्षा कहाहै, जो मुताबिकफरमान तीर्थकर गणधरोके चलनेवाले हो. मनमानी आचरणा या रूढी चलानेवालोके लिये नहीं कहा. ....