Book Title: Nyayaratna Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Bhikhchand Bhavaji Sakin
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________________ दखनमेंगये आपमुनिजी-जिनमत खूबदिपायाहै, देशदेशमें आपका सुजश बहोतसा छायाहै, मानवधर्मसंहिता एकपुस्तक-बहोत खूब फरमायाहै, प्रश्नपांचको खंडनकरके मजहब रिसाला बनायाहै, तीनथुइका परामर्श एक-तीनथुइमें रचायाहैं, विधि जैनसंस्कार बनाकर तनपरयश उपजाया है, गृहस्थापनमें नाम हटीसिंह-जन्यलग्नमें विदितविचार, संयमलीनो आपने छोड्यो कुटुंब सबधनघरवार. विद्या.३ उन्नीसवर्षकी उमरआपकी-जबसे यह संयम धार्यो, धन्यमुनिजी आपने कामक्रोध रिपुको मार्यो, सकल कामना तजी जग्तकी-लोभपाप पावकजार्यो, धन्यहो स्वामीआपने निजातम कारजसार्यो, विद्यासागर न्यायरत्नमुनि-धर्मधुरंधर पदधाया, देशदेश और नगर गांवमें सुजश आपने विस्तार्यो, सुरजमल्लकी हाथजोडकर-मुनिजीवंदना वारंवार, संयमलीनो आपने छोडयो कुटुंब सबंधनघरबार, विद्या.१ [ दोहा.] - मोहरायके राज्यमें-धर्मराएकी आन, बरतावे चेतन तदा-जीवित जन्मप्रमान. 1 सीजनबरमविधानमारकयात्रा ऊसफीसभातगाडया आजाराहरसौभागमा नपदुइभीप्नजाचाडचापीयाना

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