________________
न्यायरत्नदर्पण.
१९
सवाल सातमा . - जहोरी दलिपसिंहजीने इसमें लिखा है, आप कईदफे छापेमें लिखते है रैल हमारे वास्ते नही बनी, तो हमारे बेठने में क्या दोष है ? इससे तो कसाई जीवहिंसा करता है तो किसीका नामलेकर नही करता, फिर मांसखानेवालेको दोष लगे या नही ? वैसेही हलवाई भी सबतरहकी मीठाई बनाता है तो किसीका नामलेकर नहीं बनाता, फिर जैनमुनिकों मौललेकर खानेमें क्या ! दोष है ? अगर आप कहेगे दोषनहीतो साधुके गौचरीके बेतालीश दोषो में क्यों मनाकिया ? और यदि आपकहेगे दोष है तो रैलमेभी दोष क्यों नही ?
( जवाब ) रैलमें बेठनेवाले जैनमुनिको दोष इसलिये नही कि ऊनका इरादा धर्मका है, पांचइंद्रियोकी विषयपुष्टिका नही, कसाईके पाससे मांस मौल लेनेवालेको पाप इसलिये है कि उनका ईरादा पांचइंद्रियोंकी विषयपुष्टिका है, धर्मका नही. हलवाई के बहाँसे मिठाई मौललेनेके बारेमेभी ईरादेपर बात है. जैनमुनि परिग्रहके त्यागी होते हैं. फिर वे हलवाईके पाससे मिठाई मौलकैसे लेयगे ? जैनमुनिकों भिक्षामांगकर अपनागुजरान करना कहा. कोई महाशय चाहे जितनी दलील पेंशकरे, सामने ईन्साफके बेइन्साफी बातोंका गुजर नही.
जैनमुनिको विहारके वरुन रास्तेमें नदी आजाय तो नावमें बेठकर पार होना हुकम है, चुनाचे ! नदीमें नाव चलनेसे पानी के जीवोकी हिंसा होती है, मगर इरादा धर्मका होनेसे भावहिंसा नहीं, और विनाभाव हिंसा के पाप नहीं, इसी तरह रैलके लिये भी समजो
आजकल कई श्रावक बसबब रैलके अपना बतन छोड़कर दुरदुरके मुल्कोंमें जाबसे हैं, जहांकि जैनधर्मका जाननेवाला उपदेशक नही मिलता, अगर उसजगह कोई जैनमुनि बजरीये रैलके जावे और वहां तालीमधर्मकी देवे, तो धर्मका फायदा है, हां !