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न्यायरत्नदर्पण. नही मानते है, तो संवत् (१९६२)के जोधपुर पंचांगमे भाद्रपद सुदी पंचमीका क्षयथा, उसी मुजब बंबईकी मांगरोल जैनसभाने
और भावनमरकी जैनधर्मप्रसारक सभा वगेराके सर्व पंचांगोमें पंचमीका क्षय माना, और आपनेभी खानदेश धुलिया शहरमें चौमासाकरके पंचमीका क्षयमानकर चौथकों खरतरगछवालोके साथ संवत्सरीप्रतिक्रमण क्यों किया? इसका खुलासा दिजियेगा, _(जवाब) सुनिये! खुलासा देताई. दरअसल! तमामजैनो. को मुताबिक जैनज्योतिषके बर्ताव करना चाहिये, और में वैसाही करताहूं. संवत् (१९६२)का पंचांग निकालकर देखिये! वपगछवाले मुताबिक जैनज्योतिषके बर्ताव करते है, भाद्रपद शुक्ल चतुर्थीकी संवत्सरी करना तपगछ खरतरगछवाले दोनो मानते है, इसमें एक दुसरेका साथ क्या किया? शिवायतपगछ खरतरगछके दुसरेभी कईगछ जैनश्वेतांवरसंघमें मौजूद है जो चतुर्थीकी संवत्सरी मानते है. जैसे आपनेकहा खरतरगछवालोका साथ किया वैसे, दुसरे गछवाले कहेगे हमारा साथ किया, असलमें कोई गछवाले हो तमामजैनोको मुताबिक जैनज्योतिषके बर्ताव करना चाहिये.
सवाल छठा-देशकालानुसार जो कोई आचरणा प्रभाविक आचार्य करे वो सर्व जैनसंघ मंजुरकरे, उसीके अनुसार सर्वगछोके पूवाचार्योने व्याख्यानके समय मुहपत्ति बांधना शुरु कियाहै, और पूवाचार्योंकी आज्ञा न माने यो मिथ्यात्वी और अनंतसंसारी कहा.
(जवाब) किस जैनाचार्यने कौनसे संवत्में व्याख्यानके वख्त मुखपर मुखवस्त्रिका बांधना शुरु किया? इसका सबुत क्यौं नही बतलाया? पूर्वाचार्य कुछ जिनेंद्रोसे ज्ञानमे बडे नही, क्या ! देशकालके जाननेवाले तीर्थंकर देव नही थे ? उनको तो अपने केवलज्ञानमें देशकाल सबकुछ जानपडताथा, रूढी और आचरणा धर्मशास्त्रसे बडी नही, रूढी तो कईतरहकी.चलपडेगी, कहांतक कोई