Book Title: Nyayaratna Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Bhikhchand Bhavaji Sakin

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Page 18
________________ न्यायरत्नदर्पण. सर्वदा अभाव है, तो फिर आपने किस शास्त्रानुसार वृद्धि होनेका लिखा? शास्त्रका पाठ जाहिर किजियेगा. (जवाब) लिजिये ! शास्त्रपाठ जाहिर करता हुँ, सुनिये ! छपे हुवे लोक प्रकाशके पृष्ट (११३१) पर (४४)मे श्लोकमे साफ लिखा है. चंद्रमासविवक्षायां सूर्यमासव्यपेक्षया । कालस्य हानिवृद्धिश्च सूर्यमास विवक्षणे ॥ कर्ममास (यानी) रितुमास और चंद्रमासकी अपेक्षा हानि, और रितुमास सूर्यमासकी अपेक्षा वृद्धि होती है. देखिये ! मेने हानिद्धिके बारेमें जैनशास्त्रका पाठ बतलादिया, सूर्यप्रज्ञप्तिकी वृत्तिमें जहां अवमरात्रीका अधिकार चला है वहां लिखा है कर्म मासकी अपेक्षा सूर्यमासकी गिनतीसे एक अधिक रात्री होती है. (३०) अहो रात्रीका एक कर्ममास (यानी) रितुमास होता है. और साढेतीस अहोरात्रीका एक सूर्यमास होता है. दो महिनेकी एक रितु होती है, इस गिनतीसें छह रितुमें छह अहोरात्र बढे, ख्याल किजिये ! इस अपेक्षा हानिद्धि होना साबीत हुवा या नही ? अकलमंदोको चाहिये, दोनो तर्फके पाठ देखकर उसके नतीजेपर आवे. दुसरी यहबात है कि ग्रहोके परिवर्तनसे अगर कालकी हानिवृद्धि नहोती हो तो महिना कहांसे बढेगा? फिरतो आपका अधिक महिनाही ऊड जायगा, यातो! आप जैनज्योतिषपर चलना कायम करे या लौकिक ज्योतिषपर ! जब दो श्रावण या दो भादवै आते है तो बतलाइए ! जैनज्योतिषमें इन महिनोकी वृद्धि होती है या नहीं ? इसका कोई जवाब देवे. सवाल-पांचमा, इस सवालमें जहोरी दलिपींसहजीने लिखा है कि आप कहते है लौकिक पंचांगके मुजब पर्वतिथिका क्षय हम

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