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न्यायरत्नदर्पण. कि आपके गुरु महाराजका स्वर्गवास संवत् (१९५३) प्रथम ज्यष्ठके दुसरे पक्षकी (७) मी मंगळवारकों हुवा, तो जब दोज्येष्ठ मास होवेगे तब प्रथमज्येष्ठके दुसरेपक्षमें उनका ओछव होना चाहिये, तो फिर आप पुनरुक्ति दोष बताकर अनंत तीर्थंकरोकी आज्ञा उथापनकरके अपने संयम तथा सम्यक्तको हानिकारक प्ररुपणा क्यों करते है, __ (जवाब) मेरी प्ररुपणा सम्यक्तको हानिकारक नही, और तीर्थकरोके वचनको ऊथापन करनेवाली नहीं, आप लोग अधिक महिनेको गिनतीमें प्रमाण मानते हो, इसलिये आपको तीर्थकरोके कल्याणपर्व दोदोदफे मानना पडेगा. फर्जकरो ! कभी दो पोष महिने आ जाय तब तीर्थकर पार्श्वनाथ महाराजका जन्म कल्याणक बतलाईये ! कौनसे पौषमें करेगे, अगर पहलेपौषमें करेंगे तो दुसरा पौष छुटेगे, अगर दुसरेमें करेंगे तो पहला छुटेगा, अगर दोनोंमें करेंगे तो पुनरुक्त दोष आयगा-अब सुनिये ! मेरे गुरुजीका उत्सव मुताबिक फरमान आपके पहेले ज्येष्टमे किया तो दुसरा ज्येष्ट छुटा, और दुसरेमे किया तो पेहला ज्येष्ट छुटा, आखीरकार महिना एक छुटता ही है, यातो ! पुनरुक्त दोष गिनो या एक महिना छोडो, असलमे (३०) दिन छोडना मंजुर ही रहा, अब अधिक महिना गिनतीमें प्रमाण कहां रहा? ____सवाल चौथा, तारिख (२७) जुलाई सन ( १९१३ )के लेखमें आपने लिखा कि जैनज्योतिषमें तिथिकी हानिवृद्धि दोनों होती है, परंतु यहां मुनिश्री मणिसागरजी कहते है चंद्रप्रज्ञप्ति-ज्योतिषकरंडक वृत्ति-लोकप्रकाश विचारामृतसंग्रहवगेरा शास्त्रोके प्रमाण अनुसार जैनज्योतिषकी गिनतीमें (६१)मी अवमरात्री होकर (६२) मी तिथिका क्षय आता है, और छपाहुवा लोक प्रकाशनामा ग्रंथके स्वर्ग (२८)मा पृष्ट (११२१)से (११३०) तक देखलेना वृद्धिका