Book Title: Nyayaratna Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Bhikhchand Bhavaji Sakin

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ न्यायरत्नदर्पण. [पाठ कल्पसूत्रका.] तेणंकालेणं तेणंसमयेणं समणेभगवं महावीरे वा. साणं सविसए-राए-मासे विइकंते वासावासं पजोसवइ, [पाठ समवायांगसूत्रका.] वासाणं सवीसइ-राए-मासे विइकंते सत्तरिएहिं राहदिएाहं सेसेहि, इन दोनों पाठोका माइना यह है कि-चौमासा बेठानेके पचासमे रौज संवत्सरीपर्व करना, और बाद संवत्सरीके (७०) दिन पीछाडी रखना, (५०) और (७०) मिलानेसे (१२०) दिन हुवे, और चौमासा पुरा हुवा, अगर अधिक महिना गिनतीमें प्रमाण होता तो कल्पसूत्र और समवायांगसूत्रके पाठमें जैसाबयान जरुर होता कि यातो संवत्सरीके पेस्तर (८०) दिन रखना, या बाद संवत्सरीके (१००) दिन बाकी रखना. इससे साबीत हुवा कि अधिक महिना चातुर्मासिक-वार्षिक और कल्याणिकपर्व वगेराके व्रतनियमकी अपेक्षा गिनतीमें नहीं लेना, आप लोग जब दो श्रावण या दोभादवे महिने आते है, चौमासेके पचासमें रोज कल्पसूत्रके आधारसे संवत्सरी करलेते हो, मगर बाद संवत्सरीके जो (७०) दिन बाकी रखना समवायांगसूत्रका फरमान है उसपर ख्याल नहीं करते. क्योंकि आप लोगोकी गिनतीसे बाद संवत्सरीके (१००) दिन रहजाते है, इसका कोई जवाब देवे. सवाल-तीसरा, अनादिकालमें अनंतचौविशी बतीत हो गई, ईसमें अनंते अधिक मास हुवे, इसको सभी तीर्थकरोने गिनतीमे लिये है. ___ (जवाब ) अगर सभी तीर्थंकरोने अधिक मास गिनतीमें लिये है, तो तीर्थंकर महावीरस्वामीने चातुर्मासिक, वार्षिक और

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28