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न्यायरत्नदर्पण. नही ? मगर इससे क्या हुवा? और जब वें अपनी लब्धिसे आस्मानमें ऊडतेथे, तो बतलाइये! उनके शरीरसे जो वायुकायके जीवोकी हिंसा होतीथी, ऊसका पाप ऊनको लगताथा या नहीं ? अमर कहाजाय इरादा धर्मकाथा, इसलिये भावहिंसा नही और विना भावहिंसाके पाप नहीं, तो इसीतरह रैलविहारके लियेभी समजो. : रैलमें बेठनेवाले जैनमुनिको हरेकगांवके श्रावकोकों धर्मोपदेश देनेकी अंतराय रहेगी, ऐसा जो पुछागया है, जवाबमें मालुम हो, जहां पैदलविहारी जैनमुनि नहीं जासकेगें रैलविहारी जैनमुनि जासकेगे, इसलिये उनको धर्मोपदेश देनेकी अंतराय नही, बल्कि! छुट रहेगी. मेने जो किताब जैनतीर्थगाइड बनाई है, उसमे देखो! कहां कहांतक मेराजाना हुवाहै, करीब (६) वर्ष तक जैनश्वेतांबर तीर्थोकी तलाशीमें फिरना हुवा, पुराने शिलालेखोको अपनी नजरसे देखकर बडीमहेनतसे ऊनकी नकल किई, कईमहाशय जैनश्वेतांबरतीर्थकी मरम्मत करवाते है, कई जैनमंदिर बनवाते है, मेने खयाल किया एक किताब ऐसी बनाना चाहिये, जिसमें तमाम जैनश्वेतांबरतीर्थोंकी प्राचीनताका हाल मिलसके. गोया! मजकुर किताब जैनश्वेतांबरतीर्थोंका एक मखजन है, इतनी शोध करनेपरभी मेने किसीपर कुछआसान नहीं किया, अपनेआत्माके अशुभकर्मोकी निर्जराके लिये प्रयत्न किया है, जैनधर्मकी प्राचीनताके लेख मयसबुतके अपनी कोमकेसामने पेशकरना, हरेक जैनका फर्ज है, वहीफर्ज मेने अदा किया है. - संवत् (१९६५) में जब मेराजाना मुल्क दखन हैदराबादके आगे तीर्थ कुल्पाकजीमें हुवाथा, उसवख्त ऊसतीर्थकी किसकदर कमजोरहालत होगईथी, देखनेवाले जानते होगे, मेने वहांपर आये हुवे देखनहैदराबाद और सिकंदराबादके श्रावकोकों जीर्णोद्धारके लिये उपदेश दिया, ऊसीसालमें जीर्णोद्धारका काम जारी हुवा,