Book Title: Nyayaratna Darpan Author(s): Shantivijay Publisher: Bhikhchand Bhavaji Sakin View full book textPage 7
________________ न्यायरत्नदपण. (२७) जुलाई सन (१९१३) के लेखमें आधा दिया था. अब पुरा देता हूँ, सुनिये ! क्षये पूर्वा तिथिःकार्या, वृद्धी कार्या तथोत्तराः वीर निर्वाण कल्याणं, कार्य लोकानुगैरिह. इस पाठके लिये महाशय दलपतसिंहजीने अपनी किताबके (९) में पृष्टपर दुसरे पारिग्राफमें लिखा है, यह वाक्य श्राद्धविधि ग्रंथ भाषांतर में मेरे देखने में भी आया है, बस ! फिर इससे ज्यादा सबुत और क्या होगा ? जब उनोने श्राद्धविधि ग्रंथके भाषांतर में देखा है, तो साबीत हो गया शांतिविजयजीने नया नही बनाया. आगे जहोरी दलपतसिंहजीने लिखा है कि उन छह पत्रोकी नकल करके सातमीवार रजीष्टरी भेजी उसका भी उत्तर न मिला. ( जवाब ) तारिख (५) मी अक्टुबर सन (१९१३) के जैनपत्रमें मेने जवाब दिया है कि आपकी चीठी पर्युषणापर्वकी मिली, पहेलेकी चीठीये भी मिलीथी. ऊनकी नकल जीरी करके भेजी सोभी मीली. महाशय दलिपसिंहजीकी किताब कातिक वदी (८) मी संवत् (१९७०) के रौज छपी. मेने जवाब उसके पेस्तर दिया है. फिर जहोरी दलिपसिंहजीने अपनी किताबके पृष्ट (२) पर इस मजमूनकों पेश किया है कि ऐसे विद्वान् इतने विशेषणोको धारण करनेवाले होकरके भी मेरे प्रश्नोका उत्तर न देकर सब पत्रोको दबा बेठे. ( जवाब ) शांतिविजयजी किसीके पत्रोको दवा बेठे यह हर्गिज न होगा, अगर आप लोग बजरीये छापेके पुछते तो बराबर जवाब मिलता, मेरा रवाज है कि - वादविवाद के सवाल जवाब बजरीये छापे लेना देना याते पढनेवालोंकों भी फायदा पहुंचे.Page Navigation
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