Book Title: Nyayaratna Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Bhikhchand Bhavaji Sakin

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Page 10
________________ न्यायरत्नदर्पण. हिताके पृष्ट (२४) पंक्ति (२०)पर जो जमालिसंबंधी लिखा है, उसका विचार करके जो छापेमे खोटे लेख छपवाये है, उनका छापेद्वारा मिथ्या दुकृत देकर आत्मशुद्धि करना चाहिये अगर सत्य लेख लिखा है, तो शास्त्रानुसार प्रमाण करियेगा. (जवाब ) मेने मेरे लेख शास्त्रानुसार प्रमाण करदिये है इस किताबको अवलसे अखीरतक कोई देखलेवे. और अगर गलत है तो ऐसा कोई साबीत करबतलावे, विना ऐसा किये मुजे कोई कैसे कहसकते है कि-मिथ्या दुकृत देकर आत्मशुद्धि किजिये, जिसके आत्माकों ऊत्सूत्र प्ररुपणारुपी अशुद्धि लगी नही, उसको शुद्धि करनेकी क्या जरुरत ? मेने मेरी बनाई हुई किताब मानवधर्मसंहितामें जो लिखा है कि-जमालिजीने उत्सूत्र भाषण किया मुताबिक सूत्र आवश्यक और ऊत्तराध्ययनके लिखा है, जिनकों शक हो ऊन सूत्रो में देख लेवे. मेने उत्सूत्र भाषण नही किया अगर किया है तो कोई बतलावे. फिर जहोरी दलिपसिंहजीने अपनी किताबके पृष्ट (६) पर लिखा है ऊपरके छह पत्रोकी नकल रजीष्टरी करके भेजता हुं. इसका जवाब आनेतक छपाना बंद किया है, अबभी कृपा करके उत्तर दिजियेगा, नही तो रजीष्टरीकी नकल मिलनेसे तीन दिन पीछे छपाकर प्रकट करुंगा. आसोज वदी (७) मी संवत् १९७०, दलिपसिंह जहोरी, सिकदरपाडा नंबर (१९) कलकत्ता. (जवाब)में यही चाहता था कि बजरीये छापेके मुजसे जवाब मांगे, अछा हुवा आप लोगोने बजरीये छापेके मुजसे पुछा, मेरे पास कई महाशयोकी चीठी बजरीये डाकके रजीष्टरी होकर आती है, चीठीका जवाब देना या न देना मेरी मरजीके ताल्लुक है. ... आगे जहोरी दलिपसिंहजीने अपनी किताबके (८) में पृष्टपर इस मजमूनकों पेंश किया है सुर्य प्रज्ञप्तिकी टीकाका स्थान मेने पुछा

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