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समागत स्पष्टीकरण को लिपिबद्ध करूँ, ताकि आगामी पीढ़ी उससे लाभान्वित हो सके।
क्रिया, परिणाम और अभिप्राय तथा क्रमबद्धपर्याय निर्देशिका के लेखन-प्रकाशन के पश्चात् नयचक्र के बारे में कुछ लिखने की विचारधारा प्रबल हो उठी। कई वर्ष इस ऊहापोह में ही व्यतीत हो गये कि क्या लिखें, कैसे लिखें? क्योंकि जिस विषय पर डॉ. भारिल्लजी जैसे सशक्त लेखक एक गहन और क्रान्तिकारी कृति लिख चुके हों, उस विषय पर कुछ लिखने का साहस नहीं होता था । सोचते-सोचते निर्णय हुआ कि कार्य प्रारम्भ किया जाये तो अपने आप राह मिलेगी ।
अतः साहस करके अमेरिका प्रवास के दौरान अतुलभाई खारा के घर पर, पंचपरमेष्ठी का स्मरण करके दिनांक 20 जून 2008 को इस कृति का शुभारम्भ हो गया। इस बीच अनेक ग्रन्थों के पद्यानुवाद आदि भी कार्य होते गये तथा इस कृति का लेखन कार्य भी धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया। अनेक विद्वानों से सम्पर्क करके उनके सुझाव लेने में भी काफी समय लगा। अतः मार्च 2013 फाल्गुन अष्टाह्निका के अवसर पर यह कार्य पूर्णता को प्राप्त हुआ।
यह कृति परमभावप्रकाशक नयचक्र के अनुशीलन के रूप में विकसित होती गई। इसकी प्रमुख विशेषताएँ इसप्रकार हैं. 1. इसका मूल आधार परमभावप्रकाशक नयचक्र है।
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2. इसमें मूल ग्रन्थ में दिये गये आगम के उद्धरणों को कम करके मात्र उनका सन्दर्भ दिया गया है।
. 3. डॉ. साहब ने जिस प्रकरण का अधिक विस्तार किया है, उसे संक्षिप्त में बिन्दुवार अथवा चार्ट के रूप में प्रस्तुत किया है। जैसे - लौकिक एवं लोकोत्तर विश्वव्यवस्था की तुलना ।
4. जिन बिन्दुओं को डॉ. साहब ने ग्रन्थ विस्तार भय से स्पष्ट
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नय - रहस्य
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