Book Title: Natak Ho To Aise Author(s): Yogesh Jain Publisher: Mukti Comics View full book textPage 9
________________ नाटक हों तो सेसे. अभिनय से प्रभावित होकर राजकुमार व दरबारी सोच ही रहे थे कि तभी ---- (एक ही झटके में) हाय! ये कैसा राजकुमार का है संसार काम तमाम हो गया. रंगमंच को शोकमंच) में बदलते देरन लगी. सारा दरबार भय र दुख के वातावरण में बदल गया. और फिर ब्रहमगुलाल अपने मानव रूप में प्रा गया । प्राह ! अपने मित्र के प्रति ये कैसा ) 7-अपराध ? धिक्कार है) जैसे ब्रहमगुलाल मनुष्य मुझे.. और मेरे) होकर भी सिंह का अभिनय इस नाटक को करनेस हिंसा जसा घोर अप राध कर बैठा, उसी तरह यह मात्मा स्वभाव से भगवान प्रात्मा होकर भी मनुष्यादि शरीर को पाकर उसमें मोह करके चोर प्रपराध करते हुए चार-गति में घूम रहा है। हाय ! कैसी हुई इस भगवान-मात्मा की दुर्दशा.Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36