Book Title: Natak Ho To Aise
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 18
________________ 18. मुक्ति कामिक्स. १ वाट भाई पण्डित जी 7 वाह! खूष कही--- । परमसत्य कहते हैं ये मुनिजनः। क्यों कि मुनिधर्म से ही मोक्षरूप परमसुख प्राप्त होने के कारण यह नाटक के नियमानुसार सुश्वान्त भी है बहुत अच्छ और एक दिन भाव-परिवर्तन का जादूगर ब्रमगुलाल राजदरबार की और चल दिया. राजन! सुना रे प्रसगुलाल मुनि बन गये हैं.... R

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