________________
नाटक हों तो ऐसे. दीक्षा हेतु जंगल में आचार्य के पास जाता है,
ब्रह्मगुलाल,
हे आचार्य श्रेष्ठ ! आप अपने समान हमें भी परम सुखी होने की कला सिखाइये | जन्म-मरण के दुःख को दूर करने की कला समझाइये नाथ .. 1
मुनि बनने के बाद
वाह! इस कलाकार का जीवन भी कितना प्रेरक
तुम ठीक कहते हो
इसकी गृहस्थावस्था नाटक की शुरुआत थी, जिसमें दुःख ही दुःख थे.
17.
वीतरागी दशा अंगीकार करने वाले हे भव्य ! तेरा अविनाशी कल्याण हो.
इसने तो सारे संसार को रंगमंच बनाकर अब मुक्ति रूपी 'लक्ष्मी के साथ मध्यान्तर के बाद के दृश्य प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है.
और जब दीक्षा की अनुमति मांगने परिवारी जनों के पास गया था, वह नाटक का मध्यान्तर था।