Book Title: Natak Ho To Aise
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 20
________________ मुक्ति कामिक्स मुनिराज के उपदेश) को सुनकर सभासद वार्तालाप करते हैं कि-- हो तो ऐसा लग दिगम्बर- नेष धारण कर रहा है कि मानो वैराग्य का नाटक कर शान्तरस का ही तो मानो इन्लोन भाँमारिक रूप धारण करक नाटकों पर बिजली ही गिरा दी है। आये को इस कलाकार ने अभी तक जितने भी नाटक किये थे, वे तो वास्तव में कुखान्त ली थे | सही इन्होंने सुसान्त नाटक किया सच करती टो रानी. इस कला को देखने वमला करने मासे की कितनी शीतलता व शान्ति मिलती है। नई!ीवन जीना भी एक कला है । मनुष्य एक कलाकार है ,और उसकी कला का सच्चा व अच्छा पनि तो भुनिधर्म ही है। वाह भाई! वाह क्या गजब बात की,. तुम्हें त्री मान गये

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