Book Title: Natak Ho To Aise
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 21
________________ नाटक हो तो ऐसे तभी राजा को प्रमगुलाल के मुनि भेष की परीक्षा करने का विचार आताहै,वह कहता है हे भव्य साधु के प्रति हम तुम्हारे इस रेस अनुचित विचार साधु-वरा से बहुत बोभादायक नहीं है। प्रसन्न है |कहो तुम्हे क्या वरदान है। मैं तो यह कह खा कि यहाँ आकूर आपने साधुबनने का जो नाटक किया, उमस डम प्रभावित हुये, अब तुम अपने मूल वेश में आओ। राजन! यह जीव तीन लोक के मंच पर अनादि काल से पशु नारकी, पेड-पौधे, देव,मनुष्यादि का शरीर धारण कर नाटकी तो खेल रग परन्तु .... परन्न क्या? नाटक खेलते खेलते उसमें इतना रम गया कि, अपने असली स्वरूप को ही भूल गया में कौन हूँ” इनकी इसने अभी पहुंचाने की माने

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