Book Title: Natak Ho To Aise
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ २२ मैं क्या इतना भी नहीं जानता हूँ? मैं राजा हूँ, राजा, समझें ! इस पृथ्व का स्वामी मालिक, सबका आप कुछ और स्पष्ट कहें. यह बात तो मैंने अभी तक सुनी ही नहीं, अपूर्व बात है वाहू! नाटक हो तों ऐसा मुक्ति कामिक्स 1s अरे मन्दबुद्धि ! जरा सोचो, जब तुम्हारे पास राज्य नहीं था. तब कहाँ के राजा थे, और अब भी तुम वही हो । राजन ! पृथ्वी का स्वामी कोई नहीं कोई किसी का मालिक नहीं, यहाँ सभी अपनी सत्ता के स्वामी हैं, उसको पहचानना इस आत्मा का पहला कर्तव्य है | अत: तुम सब मृत्यु आने के पहले चेतो । यह कहकर मुनिराज जंगल में चले गये। ब्रस्नगुलाल ने तो दिखा ही दिया कि मुनिधर्म ही शान्ति व सुख प्राप्ति का सच्चा साधन है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36