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मैं
क्या
इतना भी नहीं जानता हूँ? मैं राजा हूँ, राजा, समझें ! इस पृथ्व का स्वामी मालिक,
सबका
आप कुछ और स्पष्ट कहें.
यह बात तो मैंने अभी तक सुनी ही नहीं, अपूर्व बात है वाहू! नाटक हो तों
ऐसा
मुक्ति कामिक्स
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अरे मन्दबुद्धि ! जरा सोचो, जब तुम्हारे पास राज्य नहीं था. तब कहाँ के राजा थे, और अब भी तुम वही हो ।
राजन ! पृथ्वी का स्वामी कोई नहीं कोई किसी का मालिक नहीं, यहाँ सभी अपनी सत्ता के स्वामी हैं, उसको पहचानना इस आत्मा का पहला कर्तव्य है | अत: तुम सब मृत्यु आने के पहले चेतो ।
यह कहकर मुनिराज जंगल में चले गये।
ब्रस्नगुलाल ने तो दिखा ही दिया कि मुनिधर्म ही शान्ति व सुख प्राप्ति का सच्चा साधन है।