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नाटक हो तो रेसे. राजा को सम्बोधन के बाद मुनिराज जंगल में ध्यानमग्न है तभी अचानक
तभी सिंह को आतिस्मरण हुआ.
परन्तु आश्चर्य ! सि कुत्ते की तरह पंछ हिलाकर सोचने लगा--
अरेये मेरा मित्र पर कसा वर क्रूर
भाव और अब कितना परम शान्त मा.
इस तरह के मानव को परले की
आह! एक अपराध का इतना बश दुख.. पर अब इतने अपराधों
भिंड की मनोदशा को जानकर मुनिराज बोले -- २ वनराज जिस महान मुनिधर्म को प्रदर्शन की वस्तु समझा था से जन्म उसी का प्रातफल है, इस जीव ने काम-क्रोध भी के स्वांग बहुत किये,परन्तु मान्त भावों का रुप कभी नही देखा