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तभी अचानक राजा आ गया.
हे मुनिराज ! ये कैसा आश्चर्य ? शेर तो आपको मारने आ रहा था, परन्तु ··· और आप मुनिधर्म को भी नाटक कह रहे थे।
हे मुनि पुंगव ! मुझे मुनि दीक्षा- दान दीजिए ।
सारा वृतान्त जानकर राजा को संसार से वैराग्य हो गया और...
वाह! नाटक
मुक्ति कॉमिक्स
हो तो ऐसे..
हाँ राजन ! नित्य नये नये वेश धारण करते हुये अपना मूळ स्वरूप अव्यक्त रहना ही नाटक है, और मुनि-धर्म भी नाटक का अंश तथा सिद्ध दशा नाटक का अन्तः
आह! मैं पूर्वजन्म का
राजकुमार इस राजा का पुत्र और अब से सिंह की देह
कब
1 तक होगी देह की दलाली ? परन्तु में तो शुद्धात्म
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समाप्त