Book Title: Natak Ho To Aise
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पटक हो तो ऐसे SD: LEOPO मुक्ति कॉमिक्स योगेश जैन Sarad अखि चित्र Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय • मुक्ति प्रकाशन से 'मुक्ति कॉमिक्स' का यह दूसरा पुष्प प्रकाशित करते हुए हमें अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है। हमारी पहली कॉमिक्स" कौण्डेश से कुन्दकुन्द " की पाठकों द्वारा बहुत अच्छी प्रतिक्रिया व प्रोत्साहन मिलने पर, हम इस संकल्प के साथ प्रवेश कर रहे हैं कि 21 वीं सदी तक 21 कॉमिक्स समाज को दे सकें । आशा है; हमें इसके लिए भरपूर सहयोग मिलेगा। इस सन्दर्भ में हम आज पं. श्री विनीतकुमारजी शास्त्री, आगरा व रूडकी जैन समाज के बहुत आभारी हैं, कि उनसे हमें आर्थिक सहयोग मिला । परन्तु इसके लिए बहुत दुख है कि हम इसे कुछ कठिनाइयों के कारण सही वक्त पर प्रकाशित नहीं कर सकें । एतदर्थ क्षमाप्रार्थी हैं । फिर भी हमें भविष्य में सहयोग मिलता रहेगा इस आशा के साथ आर.सी. जैन कॉमिक्स प्रकाशन में रुड़की जैनसमाज से सहयोग प्राप्त दातारों की सूची १००१) श्री नेमचंद जैन १०१) श्री आर. सी. बड़जात्या १००१) सामलरांक फाउन्डेशन कन्सलटेन्ट्स १०१) श्री विजय कुमार जैन १००१) कैलाशचन्द्र जैन ट्रंकवाले १०१) श्री विजेन्द्र कुमार जैन १००१). साधुरामजी जैन इमली वाले १०५) श्री लालचन्द्र जैन ५०१) अरुणकुमार जी जैन, कटपीस सेन्टर १०१) श्री जैन प्रिन्टिंग प्रेस ५०१), महेन्द्र कुमार वीरेन्द्र कुमार जैन १०१) श्री शीतल प्रसाद जैन तीरथकुमार जी जैन श्री शीतल प्रसाद जैन, प्रीतमकुमार जी जैन श्री नरेश प्रसादजी जैन , ५०१) श्रीमति राजकुमार जी जैन १०१) श्रीमति अंगूरीदेवी जैन २५१) श्रीमति सरोजदेवी जैन १०१) श्रीमति रेनमालाजैन २५१) श्री श्रेयांस प्रसाद जी जैन १०१) श्री हुलाश चन्द्रजी जैन १५१) श्री प्रद्युम्न कुमार जी जैन हाईडिल ११०१) श्री एस. स. जैन १०५) श्री भूपेन्द्र कुमार जी जैन श्री आर. सी. जैन १०१) श्रीमति विजय जैन १०१) श्रीमति तारादेवी जैन १०१) श्री अशोककुमार जैन १०१) श्री प्रेमचन्दजी जैन १०१) श्रीमति शारदादेवी जैन २४) फुटकर राशि प्राप्त संस्करणः महावीर निर्वाणोत्सव-९३ | मूल्य - छह रुपये १०१) ५ SA Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक हों तो ऐसे. ब्रहमगुलाल मालेख - डॉ. योगेशचन्द्र जैन. चित्रांकन- विभुवन सिंह यादव सहयोग-सरोजदी-एम.सत्र बात बहुत पुरानी है। एक राजकुमार था, उसका मित्र ब्रहमगुलाल बहुत कुशलबहरूपिया था. राजकुमार अपने मित्र की प्रायः प्रशंसा करता ही रहता था. मेरा दोस्त ब्रह्मगुलाल तो लाववों में एक है, उसका अभिनय तो बस जब देखो तब उसकी पूछो ही मत... ही प्रशंसा... जिब्स कप की धारण करता है वही लगता है. हम सब तो जैसे हैं ही नही. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुक्ति कामिक्स एक दिन ब्रहमगुलाल ने सीता का नाटक किया. Boo हे राम ! हे राम !.00 कल तुमनें ब्रहमगुलाल का, नाटक देखा.) 'वाह.. वाह. 'सचमुच और फिर तो ब्रहमगुलाल का यश राजदरबार में भी चारों तरफ फैलगया। इससे जल-भुनकर मन्त्री ने एक भयंकर षड्यंत्र रचा. उसनेराजकुमार को भड़काया . / अरे ! ऐसा स्वांग करने में क्या 00 सीता जैसा. हम तो तब जाने ( कि.. वह अपनी परीक्षा दें हाँ.. भाई हां.) ये भी - ठीक कहते है. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक हों तो ऐसे रामकुमार को तो मित्र की योग्यता पर पूर्ण | विश्वास था ही, अतः उसने कहा... तो ठीक है, उसकी परीक्षा भी कर लो. ऐसा है, तो हम सब और हम उसको सिंह के रूप में भीदेखना चाहते हैं. परन्तु हम सिंह कारूप ही) नहीं, उसका तेज पराक्रम भी देखना चाहते है। राजकुमार मंत्री की बात को दृढ़ता से स्वीकार करके गुलाल के पास व पहुंचा. यह सुन ब्रहमगुलाल सोचने लगा. अब यह परीक्षा क्यों ? हमारी कला का प्रदर्शन तो कई बार हो चुका , अवश्य ही कोई रहस्य हैं प्रिय मित्र .. प्राज तुम्हें । अपनी कला से दुश्मनों के दांत खट्टे करने ही होंगे. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुक्ति कामिक्स काफी सोच-विचारकर ब्रह्मगुलाल ने राजकुमाव से कहा पर सिंह का ही स्वांग क्यों ?) और फिर उसकापराक्रम भी... वैव.. मैं करूंगा, परन्तु ..... परन्तु क्या? मैं इसके लिए सब कुछ करने को तैयार हूं..तुम स्पष्ट करे. यदि उस समय हमसे कोई अपराध हो जावे तो क्षमा किया जावं. राजकुमार राजा के पास गया, और सारा वृतान्त कहा. ठीक है. मैं अभी पिताजी से वचन लेकर पाता हूं. तुमने यह ठीक. नहीं किया पुत्र , फिर भी) में एक प्राणीवध के प्रपराध को माफ कर दूंगा. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक हो तो ऐसे दूसरे दिन राजा की नाट्यशाला खचाखच भरी हुई थी. वाह ! नाट्यशाला देखो .. सजावट कितनी सुन्दर. अरे ! वह देखो, सिंहासन के पास बकरा ? पर वह क्यों बंधा है ? 606 उपस्थित जनता बेसब्री से - प्रतिभा. कर रही थी.. तभी... एक खूंखार शेर ने छलांग मारकर सभा मण्डप में प्रवेश किया. परे ! ये डरपोक पेशाब ही कर बैठा ०) TEEY LIC सिंह का विकराल रूप देखकर कुछ दर्शक तो भयभीत होकर भागने लगे. तभी... Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुक्ति कामिम्स राजकुमार सिंह की भयानक गर्जना करने पर भी वहीं बैठा रहा प्रौर दहाड़ते सिंह को ललकारते हुए कहा कि--.. रे सिंहा तेरा कैसा पराक्रम? ते सामने बकरा खड़ा प्रौर गधे (की तरह ढे-ढेचूं कर रहा, धिक्कार) है तेरी मां के दूध को .. HOM. इतना सुनते ही सिंह की प्रारदे भयंकर क्रोध से लाल हो गयी, और अपमानित सिंह गरज उठा --- (कमाल है, ब्रहमगुलाल बिल्कुल र ) अहिंसक है, 7 सा लग रहा है। किसी (किसी को मार तो को सच्चाई पता न होती तो) (सकता नहीं, फिर सिंह शायद किसी की हृदयगति कसा निश्चित रूप रक जाती.. से अनुत्तीर्ण होगा परीक्षा देखें अब क्या करताहै. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक हों तो सेसे. अभिनय से प्रभावित होकर राजकुमार व दरबारी सोच ही रहे थे कि तभी ---- (एक ही झटके में) हाय! ये कैसा राजकुमार का है संसार काम तमाम हो गया. रंगमंच को शोकमंच) में बदलते देरन लगी. सारा दरबार भय र दुख के वातावरण में बदल गया. और फिर ब्रहमगुलाल अपने मानव रूप में प्रा गया । प्राह ! अपने मित्र के प्रति ये कैसा ) 7-अपराध ? धिक्कार है) जैसे ब्रहमगुलाल मनुष्य मुझे.. और मेरे) होकर भी सिंह का अभिनय इस नाटक को करनेस हिंसा जसा घोर अप राध कर बैठा, उसी तरह यह मात्मा स्वभाव से भगवान प्रात्मा होकर भी मनुष्यादि शरीर को पाकर उसमें मोह करके चोर प्रपराध करते हुए चार-गति में घूम रहा है। हाय ! कैसी हुई इस भगवान-मात्मा की दुर्दशा. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 इकलौते पुत्र की मृत्यु से राजा बेहद दुखी थे, निरुपाय भी हाय ! मैं बरबाद हो गया, अपनी गलती से ही प्रपो प्यारे पुत्र खो बैठा. को राजा को भड़काते हुए मंत्री ने कहा. मुक्ति कामिक्स शान्त होइये राजन ! जो होना था वह हो गया। परन्तु ब्रहम गुलाल ने यह अच्छा नही किया, यदि .. नही ... तो क्या ? तुम्हारा मतलब है उसने । जानबूझकर किया है। नहीं.. नहीं वह सच्चा कलाकार है, निर्दोष है, जो रूप धरता है, उसमें तन्मय हो जाता है ।. परन्तु राजन ! इसके लिए मेरा मन नहीं मानता अनजाने में यह सब सम्भव भी तो नहीं... यदि आपकी बात सत्य ही है तो फिर उससे दिगम्बर मुनि का नाटक कराके वैराग्य व शांति का उपदेश देने को कही... फिर देखो सच्चाई क्या थी ? अच्छा ! हम उससे । यह कहेंगे, इससे हमारे पुत्र वियोग का दुख भी दूर होगा और उसकी परीक्षा भी, Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक हों तो ऐसे. दूसरे दिन राजा ने ब्रहमगुलाल को मुलाया. प्रिय कलाकार !L प्रब हम शान्त वैराग्य रूप का दर्शन करना चाहते हैं। अतः तुम दिगम्बर मुनि.... राजन प्रापकी माझा शिरोधार्य है। परन्तु हमें कुछ समय चाहिये । M राजा को वचन देकर ब्रहमगुलाल ARMANHARIA जैन साधनों की सूक्ष्म- दिनचर्या देखने मी जंगल जा पहुंचा वहां से थकाहार वह घर आकर ) देर रात तक सोचता रहा.. अहो! इनका कितना कठिनतम परन्तु रेख! (सहज-आनन्ददायक जीवन दिगम्बर जैन साधु का जविन कोई नाटक नहीं जो खेला जा सके वह तो विवेक व वैराग्य भावना का फल है. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 मुक्ति कामिक्स प्रातः ब्रह्मगुलाल ने माँ से अपनी समस्या कही, तो माँ रोने लगी. अरी माँ ! तू शेती क्यों है? क्या तुके अपने की योग्यता पर ) विश्वास नहीं ? पुब पर आखिर क्यूँ ? मेरे लाल ! माँ सब कुछ सह सकती है पर पुत्र वियोग नहीं, और दिगम्बर वेश धारण करके पुन: दूसरा भेष नहीं रखा जाता, अतः वियोग 'निश्चित है।' अरे बेटे ! क्या अपने दूध से पाले-पोषे पुत्र की योग्यता का ज्ञान नहीं ? रे मूर्ख! तेरी योग्यता पर विश्वास होने से ही रो रही हूँ। माँ ठीक ही तो कहती है । Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक हों तो ऐसे मुनि बनने का निर्णय करके वर अपने घर वालों की आज्ञा लेने आता है। हे माँ ! मैने पाप के नाटक तो बहुत किये, और तूने तो उसकी प्रशंसा तक की अब घका नाटक करने का अवसर आया है माँ ! तू इसकी सहषे आज्ञा देन] हॉलॉ क्यों नहीं पर बेटे यह नाटक तो सभी नाटक कर लेने के बाद का नाटक है । इसके बाद दूसरा नाटक नहीं किया जात), और तुझे अभी पिता टोना है, तेरी अभी शादी हुई है। प्रिय भाई, ! माँ सच कहती है, यह कालजयी नाटक और इतना सरल भी नहीं है, तथा यह प्रदर्शन की वस्तु तो है ही नही, लोकरंजन का विषय भी नही है, अतः अपना विचार छोड़ दो। मित्र ! जानता हूँ साधु जीवन जीना एक पिशेष कला है, जिसके लिए दय की सच्चाई व अभ्यास चाहिये। मैंने इस चुनौती को विवेकपूर्वक स्वीकारा है। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14. मुक्ति कामिम्स और यह खबर चारों तरफ फैल गई लोग बातें करने लगे... अरे भोट ! 38, देख शहर में क्या हो रहा कुछ सुना तने ९ अपना गुलाल ... चल नाश यहाँ से! बड़ा आया यहाँ गुलाल लगाने. पागल.. मुझे जगा दिया आकर .. अरे मूख! अभी क्या होली है में श्री - मीठे स्वप्न देख रहा था. नई ! मै तो मित्र गुलाल की बात कर रहाँ था | सुना है वह अब साधु ... ठीक है ठीक है.. मैं सब भर जैसा भोटा-ताजा सोना चाहता है | वार.. भाई वाह ! बढ़ियाबढ़िया स्वादिष्प भोजन, खूब सेवाप्रशंसा और मजे में सोते रहो. नटी भाई ! नहीं, ऐसा नहीं, वर नग्न दिगम्बर जैन साधु बन रहा है ... इसमें गम्भीर जानव तपश्चरण Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक हों तो ऐसे. 15 अच्छा तो ये बात थी अब समझा कि ... RAN १.अरे पेटू! अब पता चला कि तेरे पास समझदारी भी है। बोल तू क्या कह रहा था. मैं अभी कुछ दिनों से ब्रह्मगुलाल को जंगल में कुछ नम्न साधुओं के पास पड़तालिखता दख रहा. कमाल है,साधु टोने के लिए इतने दिनों से कठोर अभ्यास ---- सच्के, साधु बनने के पहले साधु का जीवन समझना आवश्यक पर मेरी तो कुछ और ही समझ में आ रहा है। राजा ने साधु का नाटक करने का कहकर पुत्र की मृत्यु का बदला । तो नहीं लिया है ? ताकि नगा साधु लोकर भूख-प्यास तथा अन्य तकलीफें सह- सहकर भर आये. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुक्ति- कामिक्स । वाह !लम्बु छोटे वाह! खूब लम्बी सोची. क्या रखाक मोची हमारा गुलाल बहुत बड़ा कलाकार है और अच्छा व बड़ा, कलाकार वही हो सकता है, जिसे अपनी कला में आनन्द आये | देख लेना उमारे मित्र को भी अपने इस कार्य में आनन्द ही आयेगा. में कहता हूँ कि वह ऐसा नारककरेली क्यों? इससे क्या लाभ १राजा का क्रोध तो दूर भनि रोने के बाद राजा के खुश) होने में कोई दम नहीं; और. नाराजगी में कोई गम नहीं क्यों का गुलाल वीतरागी हो जायेगा। हॉ भाई! ज्ञान रूपी कला जिनके उदय में प्रकट टो आती है, वे तो संसार में सहजली वैरागी हो जाते हैं अब तो में समझ गया आई कि आला और शरीर का द जान प्रकट होना भी एक कला की है। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक हों तो ऐसे. दीक्षा हेतु जंगल में आचार्य के पास जाता है, ब्रह्मगुलाल, हे आचार्य श्रेष्ठ ! आप अपने समान हमें भी परम सुखी होने की कला सिखाइये | जन्म-मरण के दुःख को दूर करने की कला समझाइये नाथ .. 1 मुनि बनने के बाद वाह! इस कलाकार का जीवन भी कितना प्रेरक तुम ठीक कहते हो इसकी गृहस्थावस्था नाटक की शुरुआत थी, जिसमें दुःख ही दुःख थे. 17. वीतरागी दशा अंगीकार करने वाले हे भव्य ! तेरा अविनाशी कल्याण हो. इसने तो सारे संसार को रंगमंच बनाकर अब मुक्ति रूपी 'लक्ष्मी के साथ मध्यान्तर के बाद के दृश्य प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है. और जब दीक्षा की अनुमति मांगने परिवारी जनों के पास गया था, वह नाटक का मध्यान्तर था। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18. मुक्ति कामिक्स. १ वाट भाई पण्डित जी 7 वाह! खूष कही--- । परमसत्य कहते हैं ये मुनिजनः। क्यों कि मुनिधर्म से ही मोक्षरूप परमसुख प्राप्त होने के कारण यह नाटक के नियमानुसार सुश्वान्त भी है बहुत अच्छ और एक दिन भाव-परिवर्तन का जादूगर ब्रमगुलाल राजदरबार की और चल दिया. राजन! सुना रे प्रसगुलाल मुनि बन गये हैं.... R Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19 नाटक में तो सेसे. राजदरबार में मुनिराज ब्रमगुलाल के प्रवेश करते रवड़ी हुई पूरी सभा सम्मान में उठ - सभासदों के बैठने पर राजा ने मुनिशज को उचासन पर विराजमान कर उपदेश देने का आग्रह किया. राजन! इस आत्मा में अनन्त शक्तियों में पशु से परमात्मा बनने की सामथ्य अतः शोकभाव छोड़कर शतिभाव धारण करो। धन्य है तुम्हारी कला, कलाकार होतो ऐसा-. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुक्ति कामिक्स मुनिराज के उपदेश) को सुनकर सभासद वार्तालाप करते हैं कि-- हो तो ऐसा लग दिगम्बर- नेष धारण कर रहा है कि मानो वैराग्य का नाटक कर शान्तरस का ही तो मानो इन्लोन भाँमारिक रूप धारण करक नाटकों पर बिजली ही गिरा दी है। आये को इस कलाकार ने अभी तक जितने भी नाटक किये थे, वे तो वास्तव में कुखान्त ली थे | सही इन्होंने सुसान्त नाटक किया सच करती टो रानी. इस कला को देखने वमला करने मासे की कितनी शीतलता व शान्ति मिलती है। नई!ीवन जीना भी एक कला है । मनुष्य एक कलाकार है ,और उसकी कला का सच्चा व अच्छा पनि तो भुनिधर्म ही है। वाह भाई! वाह क्या गजब बात की,. तुम्हें त्री मान गये Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक हो तो ऐसे तभी राजा को प्रमगुलाल के मुनि भेष की परीक्षा करने का विचार आताहै,वह कहता है हे भव्य साधु के प्रति हम तुम्हारे इस रेस अनुचित विचार साधु-वरा से बहुत बोभादायक नहीं है। प्रसन्न है |कहो तुम्हे क्या वरदान है। मैं तो यह कह खा कि यहाँ आकूर आपने साधुबनने का जो नाटक किया, उमस डम प्रभावित हुये, अब तुम अपने मूल वेश में आओ। राजन! यह जीव तीन लोक के मंच पर अनादि काल से पशु नारकी, पेड-पौधे, देव,मनुष्यादि का शरीर धारण कर नाटकी तो खेल रग परन्तु .... परन्न क्या? नाटक खेलते खेलते उसमें इतना रम गया कि, अपने असली स्वरूप को ही भूल गया में कौन हूँ” इनकी इसने अभी पहुंचाने की माने Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ मैं क्या इतना भी नहीं जानता हूँ? मैं राजा हूँ, राजा, समझें ! इस पृथ्व का स्वामी मालिक, सबका आप कुछ और स्पष्ट कहें. यह बात तो मैंने अभी तक सुनी ही नहीं, अपूर्व बात है वाहू! नाटक हो तों ऐसा मुक्ति कामिक्स 1s अरे मन्दबुद्धि ! जरा सोचो, जब तुम्हारे पास राज्य नहीं था. तब कहाँ के राजा थे, और अब भी तुम वही हो । राजन ! पृथ्वी का स्वामी कोई नहीं कोई किसी का मालिक नहीं, यहाँ सभी अपनी सत्ता के स्वामी हैं, उसको पहचानना इस आत्मा का पहला कर्तव्य है | अत: तुम सब मृत्यु आने के पहले चेतो । यह कहकर मुनिराज जंगल में चले गये। ब्रस्नगुलाल ने तो दिखा ही दिया कि मुनिधर्म ही शान्ति व सुख प्राप्ति का सच्चा साधन है। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 23 नाटक हो तो रेसे. राजा को सम्बोधन के बाद मुनिराज जंगल में ध्यानमग्न है तभी अचानक तभी सिंह को आतिस्मरण हुआ. परन्तु आश्चर्य ! सि कुत्ते की तरह पंछ हिलाकर सोचने लगा-- अरेये मेरा मित्र पर कसा वर क्रूर भाव और अब कितना परम शान्त मा. इस तरह के मानव को परले की आह! एक अपराध का इतना बश दुख.. पर अब इतने अपराधों भिंड की मनोदशा को जानकर मुनिराज बोले -- २ वनराज जिस महान मुनिधर्म को प्रदर्शन की वस्तु समझा था से जन्म उसी का प्रातफल है, इस जीव ने काम-क्रोध भी के स्वांग बहुत किये,परन्तु मान्त भावों का रुप कभी नही देखा Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24. तभी अचानक राजा आ गया. हे मुनिराज ! ये कैसा आश्चर्य ? शेर तो आपको मारने आ रहा था, परन्तु ··· और आप मुनिधर्म को भी नाटक कह रहे थे। हे मुनि पुंगव ! मुझे मुनि दीक्षा- दान दीजिए । सारा वृतान्त जानकर राजा को संसार से वैराग्य हो गया और... वाह! नाटक मुक्ति कॉमिक्स हो तो ऐसे.. हाँ राजन ! नित्य नये नये वेश धारण करते हुये अपना मूळ स्वरूप अव्यक्त रहना ही नाटक है, और मुनि-धर्म भी नाटक का अंश तथा सिद्ध दशा नाटक का अन्तः आह! मैं पूर्वजन्म का राजकुमार इस राजा का पुत्र और अब से सिंह की देह कब 1 तक होगी देह की दलाली ? परन्तु में तो शुद्धात्म 000 समाप्त Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ अंगारक के प्रालेख - डॉ. योगेश जैन. चित्रांकन - त्रिभुवन सिंह सहयोग - सरोज वी० एम० आज सेठानी ईर्ष्या से जली-भुनी जा रही थी और पड़ोसिन को नीचा दिखाने की सोच रही थी, तभी उसके पति ने प्रवेश किया| १ अरीभागवान ! सुनो अभी तक भोजन नहीं.. मझसे मत बोलो तुम्टारी नौकरानी हूँ? सोइया हूँ? TIMIT चन्द्रमुखी से ज्वालामुखी बनी पत्नी की। खुशामद करते हुये भोलू बोला - अरी बावली ! कैसी बातें करती हो? नारी के गले की शोभा तो मधुर वाणी, व्यवहार और उसका शील है! रानी कुछ कहो भी, बात क्या हुई?कहे चिना हमें कैसे पता चले ? त्या का मुहल्ले की सारी औरते तो शेजू . नये-नये गहने पहने और मैं बस वही सालों पुराना हार, चूड़ियाँ - | तुम कुछ सभूकतेलो ? बिना सुन्दर गहने परने समाज में सम्मान नहीं मिलता Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 मुक्ति कॉमिक्स तुम्हें क्या हो गया है ? भैस के गले में बँधी मॉकल की तरह गूले में हार बाँध लेने से समाज में इज्ज़त लोती है म उपदेश नटी ठार-चाहिये हार.. फूलस्वरूप पत्नीपीड़ित भोलूराम सर्राफ की दुकान पर जा पहुंचा। 3552 सेठ जी! कोई ऐसा सुन्दर हार दिखाओ जो किसी के पास न टो। अच्छा ! बैठो, लाता हूँ। ऐसा हार,जो संसार में कोई न बना सके -- ये लो बस एक टी है। अंगारक ने बनाया था, जो राजा का विशोष सुनार था, पर अब वह कभी नहीं बनायेगा - -18 पर ऐसा क्यों? पूरी बात कहोन] Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और अंगारक की कथा सुनकर भोलू अपने घर आया लो प्यारी संसार का सबसे सुन्दर हार.... दूसरे दिन जब हार पहनकर उत्सव में गई अंगारक. ये कितनी निर्दयी दृष्ट औरतें.. | मेरे हार कंगन को कोई देख ही नहीं रहीं.... ना कोई पूछ रही.. दु:खी सेठानी ने गहने दिखाने की एक तरकीब निकाली। अपने घर में स्वयं ही. आग लगाकर आग- आग... बचाओ- बचाओ... 27 वाह ! सचमुच कितना सुन्दर... तुम बहुत अच्छे हो Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 मुक्ति कॉमिक्स तभी एक महिला ने पू. . वाह सेठानी ! ये कंगन हार बहुत सुन्दर हैं; कब खरीदा, फिसने बनाया .... अरे मुई! अब तक कहा थी? जब सारा घर जलकर राख हो गया. तब हार कंगन की तारीफ कर रही है। सत पर बताओ एसे गहने अब तकनर The ०० आल! जिन गहनो के शौक ने मेरे भुख-चैन छीने , यहाँ तक घर में भी आग लगा दी, और तो और इसफो" बनाने वाला अंगाखा अरी ! ये अंगारक कौन है? जश मैं भी तो भु: इस देश के राजा के यहाँ अत्यन्त बुद्धिमान प-चतुर अंगारक नाम का एक सुनार था। एक दिन राजा ने आदेश दिया Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगारक. २ . प्रिय अंगारक!अबकी बार ऐसे आभूषण बनाओ जैसे अब तक किसी ने न बनाये हों। जैसी आपकी इच्छा. और शबाने सोना व अमूल्य नगीना देकर विदा किया। अंगारक भोना व नगीना लेकर अपने घर गहने बनाने लगा। अजी उठो! मुह से काम कर रहे हो,दसू बज गये, भोजन करलो वह भोजन के लिये हाथ - मुंह घोने घर के बाहर आता है। हाहा! अभी आता र Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30. मुक्ति- कॉमिक्स पर जैसे ही घर के बाहर आता है तो वह देखता है कि अरे वाह! धन्य भाग हमारे, अतिथि-पूजा सत्कार का महान सुअवसर / मुनिराज !, लगता है साक्षात् मोक्षमार्ग ही हमारे द्वार पर चलकर आ रहा हो। महान पुष्योदय से अंगारक पत्नी सहित : मुनिराज को पड़गाहन कर आहार देता है। तभी घर के आंगन में वृक्ष पर बैठा भूखा मोर नीचे उतर आता है | Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 31 · अंगारक, नवधा भक्तिपूर्वक आहारदान के बाद अंगारक स्वयं भोजन करता है। और फिर अब गहने बनाने आता है तो-- लाया में लुट गया -.. अब क्या होगा - अभी तो यही था.. अरे ! क्या हो गया ? इतनी सर्दी में भी पसीना -. क्या ढूंढ हे हो ? चुप रह! मैं तो मर जाऊँगा , क्या मुँह दिखाऊँगा..| अभी तो यहीं रखकर गया था. राजा का बेशकीमती नगीना,मैं यहीं रखकर गया था नहीं मिला तो भर आऊंगा ... साय! क्या कर रे हो? अब क्या होगा। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुक्ति-कॉमिक्स मनिराज के अलावा तो अभी तक यहाँ कोई, नहीं आया,लगता है वही ... अरे ! तुम्हें पता है कि तुम क्या कर रहे हो ? अचायमहाव्रत के धारी मुनिराज क्या कभी ऐसा अधम कार्य कर सकते हैं ९ नहीं-- नहीं वही पापी आह! मैं क्या सुन रही १ अरी धरती! तूफट क्यानटी गई -- काश! आज मैं बहरी होती और अत्यन्त कृद्ध होकर अंगारक गुनिराज को मारने जंगल की ओर चल दिया। अरे! वह देखो ! वही -चोर ---देखता हूँ... धूर्त । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33. अंगारक. पास आने पर जब अशारक गाली-गलौच करने लगा,तो उपसर्गजयी-मुनिराज ने शान्तिपूर्वक मौन धारण कर लिया। अरे-चुप क्यों हो गया बता भेश नगीना कहाँ नहीं | तो.. लो ये-चरवो मज़ा. परन्तुण्डा पेड़ पर जालगा अरे वाह! ये नगीना ऊपरपेड़ से गिरा. परन्तु यही -- बिल्कुल यही.- मेरा नगीना -- और मोरनी वही जो मेरे आँगन पर आकर बैठता है.. भारी बात समझकर अंगारक को बहुत पश्चाताप हुआ | क्षमा करें भगवन! मुझसे भारी अपराध हुआ. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ4 मुक्ति- कमिन्स आत्मग्लानि से भश अंगारक नगीना लेकर शजा के पास गया. अपराध क्षमा करें राजन ये लो अपना नगीना और स्वर्ग- इस अड़-रत्न को लगाने में मैंने अमूल्य नर - जन्म यू ही गंवाया। अरे क्या हुआ? क्या । तुमने रत्न लगाना बन्द कर दिया ? नहीं राजन ! रन लगाने का काम तो अब शुरू कर रहा हूँ। अपने शुद्धात्मद्रव्य में संयमरत्न --. जिसके लिए ये दुर्लभ मनुष्यजन्म मिला है। हमारा पूरा राज्य धन्य, तुम्हारे विचारों पर ।। धन्य है अंगारक. (समाप्त Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय भारतीय कथा साहित्य में जैन कथा साहित्य काफी समृद्धि लिये हुए तो है ही; साथ ही वह अपना अलग से वैशिष्ट्य लिए हुए भी है । जिसके कारण भले ही उरके कुछ पात्र अन्य कथाओं से साम्य लिये हुए हों ; परन्तु उनके उददेश्य एकदम पृथक् व अपने दार्शनिक व नैतिक गरिमा के अंदाज लिये हुए हैं। यदि जैन कथाकारों से यह प्रश्न किया जावे कि तुम्हारे नायक में ऐसी क्या विशेषता है कि, जो अन्य कथाकारों से पृथक करके अपनी स्वतन्त्र पहिचान बनाने में सरलतमरूप से सक्षम हो, सहज ग्राह्य हो । तो जैन कथाकारों का एकमेव उत्तर होगा कि उनके नायक न तो ईश्वरीय रूप हैं , और न ईश्वर ही ; अपितु अपनी प्रभुता को प्रगट करने की महत्वाकांक्षा वाले वे सामान्य-पात्र हैं, कि जिनका लक्ष्य वीतरागता है, और अपने प्रतीक्षित-क्षण में उस वीतरागी नग्न दिगम्बर दशा को प्रगट करते हुए कथा का समापन करते हैं । जो कि सही अर्थों में इस संसार रूपी मंच में खेले जाने योग्य नाटक है। जैसा कि आप इस कॉमिक्स में पायेगें ही। ___ इस कॉमिक्स का प्रिय पात्र ब्रह्मगुलाल फिरोज़ाबाद के समीप चन्द्रवार नामक स्थान का लगभग 16-17 वीं शताब्दी में पद्मावती-पुरवाल जाति को सुशोभित करने वाले एक अभिनयरत्न पुरुष हैं। इनका इस कामिक्स में कुछ पौराणिक व कुछ कल्पनालोक से लिए मोतियों को चुन-चुनकर यहाँ माला के रूप में पिरोया है ; जो संस्कार-विहीन पीढ़ी का कण्ठहार बनी, तो मेरे लिए यह गर्व की बात होगी ; और मुक्ति-कामिक्स परिवार का सही वक्त पर सही कदम भी .....। डा. योगेशचन्द्र जैन | इक्कीस कामिक्सों के संग वढ़ें इक्कीसवीं सदी को कदम ..........| संरक्षक सदस्य 5001) सम्मानित सदस्य 1001) सदस्य 151) Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या आप अपने बच्चों के तन ढकने को अच्छे कपड़े लाकर नहीं देते? हाँ! भाई ! हाँ !..... और आप उन्हें सभी सुख सुविधाएं नही देते जिनकी उन्हें आवश्यकता है? हाँ ! हाँ ! क्यों नहीं : हमें उनकी पूरी चिन्ता है। पर क्या आप उनमें सदाचार विचार निर्माण के लिए कुछ देते हैं? ?? हाँ ! हाँ ! बोलिये बोलिये चुप क्यों हैं? परन्तु ............... परन्तु वरन्तु कुछ नही; हमनें आपकी चिन्ता समझी है.. 'अब ज्यादा देर तक नहीं...। आज ही 'मुक्ति कॉमिक्स' परिवार के सदस्य बनकर श्रेष्ठ आचार-विचार के अलंकरणों से अपने नन्हें-मुन्ने बच्चे को सजाकर इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कराइये। आज ही 'मुक्ति प्रकाशन, अलीगंज' के नाम ड्राफ्ट बनाइये मुक्ति कॉमिक्स पढ़िये.... इक्कीसवीं सदी में चलिये ... / मुक्ति प्रकाशन, अलीगंज (एटा), उ.प्र., 207247