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नाटक में तो सेसे. राजदरबार में मुनिराज ब्रमगुलाल के प्रवेश करते रवड़ी हुई
पूरी सभा सम्मान में उठ
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सभासदों के बैठने पर राजा ने मुनिशज को उचासन पर विराजमान कर उपदेश देने का आग्रह किया.
राजन! इस आत्मा में अनन्त शक्तियों में पशु से परमात्मा बनने की सामथ्य अतः शोकभाव छोड़कर शतिभाव धारण करो।
धन्य है तुम्हारी कला, कलाकार होतो ऐसा-.