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मुक्ति- कमिन्स आत्मग्लानि से भश अंगारक नगीना लेकर शजा के पास गया.
अपराध क्षमा करें राजन ये लो अपना नगीना और स्वर्ग- इस अड़-रत्न को लगाने में मैंने अमूल्य नर - जन्म यू ही गंवाया।
अरे क्या हुआ? क्या । तुमने रत्न लगाना बन्द कर दिया ?
नहीं राजन ! रन लगाने का काम तो अब शुरू कर रहा हूँ। अपने शुद्धात्मद्रव्य में संयमरत्न --. जिसके लिए ये दुर्लभ मनुष्यजन्म मिला है।
हमारा पूरा राज्य धन्य, तुम्हारे विचारों पर ।।
धन्य है अंगारक.
(समाप्त