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नाटक हों तो ऐसे
रामकुमार को तो मित्र की योग्यता पर पूर्ण | विश्वास था ही, अतः उसने कहा...
तो ठीक है, उसकी परीक्षा भी कर लो.
ऐसा है, तो हम सब और हम
उसको सिंह के रूप में भीदेखना चाहते हैं. परन्तु हम
सिंह कारूप ही) नहीं, उसका तेज पराक्रम भी देखना
चाहते है। राजकुमार मंत्री की बात को दृढ़ता से स्वीकार करके गुलाल के पास व पहुंचा.
यह सुन ब्रहमगुलाल सोचने लगा.
अब यह परीक्षा क्यों ? हमारी कला का प्रदर्शन तो कई बार हो चुका , अवश्य ही कोई रहस्य हैं
प्रिय मित्र .. प्राज तुम्हें । अपनी कला से दुश्मनों के दांत खट्टे करने ही होंगे.