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इकलौते पुत्र की मृत्यु से राजा बेहद
दुखी थे, निरुपाय भी
हाय !
मैं
बरबाद
हो गया, अपनी गलती से ही प्रपो प्यारे पुत्र खो बैठा.
को
राजा को भड़काते हुए मंत्री ने कहा.
मुक्ति कामिक्स
शान्त होइये राजन ! जो होना था वह हो गया। परन्तु ब्रहम गुलाल ने यह अच्छा नही किया, यदि ..
नही
...
तो
क्या ? तुम्हारा मतलब है उसने । जानबूझकर किया है। नहीं.. नहीं वह सच्चा कलाकार है, निर्दोष है, जो रूप धरता है, उसमें तन्मय हो जाता है ।.
परन्तु राजन ! इसके लिए मेरा मन नहीं मानता अनजाने में यह सब सम्भव भी तो नहीं...
यदि आपकी बात सत्य ही है तो
फिर उससे दिगम्बर मुनि का नाटक कराके वैराग्य व शांति का उपदेश देने को कही... फिर देखो सच्चाई क्या थी ?
अच्छा ! हम उससे । यह कहेंगे, इससे हमारे पुत्र वियोग का दुख भी दूर होगा और उसकी परीक्षा भी,