Book Title: Natak Ho To Aise
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 24
________________ 24. तभी अचानक राजा आ गया. हे मुनिराज ! ये कैसा आश्चर्य ? शेर तो आपको मारने आ रहा था, परन्तु ··· और आप मुनिधर्म को भी नाटक कह रहे थे। हे मुनि पुंगव ! मुझे मुनि दीक्षा- दान दीजिए । सारा वृतान्त जानकर राजा को संसार से वैराग्य हो गया और... वाह! नाटक मुक्ति कॉमिक्स हो तो ऐसे.. हाँ राजन ! नित्य नये नये वेश धारण करते हुये अपना मूळ स्वरूप अव्यक्त रहना ही नाटक है, और मुनि-धर्म भी नाटक का अंश तथा सिद्ध दशा नाटक का अन्तः आह! मैं पूर्वजन्म का राजकुमार इस राजा का पुत्र और अब से सिंह की देह कब 1 तक होगी देह की दलाली ? परन्तु में तो शुद्धात्म 000 समाप्त

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