Book Title: Natak Ho To Aise
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 10
________________ 10 इकलौते पुत्र की मृत्यु से राजा बेहद दुखी थे, निरुपाय भी हाय ! मैं बरबाद हो गया, अपनी गलती से ही प्रपो प्यारे पुत्र खो बैठा. को राजा को भड़काते हुए मंत्री ने कहा. मुक्ति कामिक्स शान्त होइये राजन ! जो होना था वह हो गया। परन्तु ब्रहम गुलाल ने यह अच्छा नही किया, यदि .. नही ... तो क्या ? तुम्हारा मतलब है उसने । जानबूझकर किया है। नहीं.. नहीं वह सच्चा कलाकार है, निर्दोष है, जो रूप धरता है, उसमें तन्मय हो जाता है ।. परन्तु राजन ! इसके लिए मेरा मन नहीं मानता अनजाने में यह सब सम्भव भी तो नहीं... यदि आपकी बात सत्य ही है तो फिर उससे दिगम्बर मुनि का नाटक कराके वैराग्य व शांति का उपदेश देने को कही... फिर देखो सच्चाई क्या थी ? अच्छा ! हम उससे । यह कहेंगे, इससे हमारे पुत्र वियोग का दुख भी दूर होगा और उसकी परीक्षा भी,

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