Book Title: Natak Ho To Aise
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 11
________________ नाटक हों तो ऐसे. दूसरे दिन राजा ने ब्रहमगुलाल को मुलाया. प्रिय कलाकार !L प्रब हम शान्त वैराग्य रूप का दर्शन करना चाहते हैं। अतः तुम दिगम्बर मुनि.... राजन प्रापकी माझा शिरोधार्य है। परन्तु हमें कुछ समय चाहिये । M राजा को वचन देकर ब्रहमगुलाल ARMANHARIA जैन साधनों की सूक्ष्म- दिनचर्या देखने मी जंगल जा पहुंचा वहां से थकाहार वह घर आकर ) देर रात तक सोचता रहा.. अहो! इनका कितना कठिनतम परन्तु रेख! (सहज-आनन्ददायक जीवन दिगम्बर जैन साधु का जविन कोई नाटक नहीं जो खेला जा सके वह तो विवेक व वैराग्य भावना का फल है.

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