Book Title: Natak Ho To Aise
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 13
________________ नाटक हों तो ऐसे मुनि बनने का निर्णय करके वर अपने घर वालों की आज्ञा लेने आता है। हे माँ ! मैने पाप के नाटक तो बहुत किये, और तूने तो उसकी प्रशंसा तक की अब घका नाटक करने का अवसर आया है माँ ! तू इसकी सहषे आज्ञा देन] हॉलॉ क्यों नहीं पर बेटे यह नाटक तो सभी नाटक कर लेने के बाद का नाटक है । इसके बाद दूसरा नाटक नहीं किया जात), और तुझे अभी पिता टोना है, तेरी अभी शादी हुई है। प्रिय भाई, ! माँ सच कहती है, यह कालजयी नाटक और इतना सरल भी नहीं है, तथा यह प्रदर्शन की वस्तु तो है ही नही, लोकरंजन का विषय भी नही है, अतः अपना विचार छोड़ दो। मित्र ! जानता हूँ साधु जीवन जीना एक पिशेष कला है, जिसके लिए दय की सच्चाई व अभ्यास चाहिये। मैंने इस चुनौती को विवेकपूर्वक स्वीकारा है।

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