Book Title: Nandisutt and Anuogaddaraim
Author(s): Devvachak, Aryarakshit, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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सते
८८
२५८
नंदिसुत्तपरिसिट्ठाई मूलसद्दो सक्कयत्यो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो सक्कयत्यो सुत्तंकाइ वेसमणे वैश्रवणः, वैश्रवणोपपातः- सण्णी
संज्ञी ६९,पृ.२८टि.४ जैनागमः पृ.३२टि.. सण्णीणं संज्ञिनाम् ३२ वेसमणोववाए वैश्रवणोपपातः
सतभद्दियामओ शास्त्रविशेषः पृ.२९टि.१० जैनागमः
सतसहस्सपुहत्तं शतसहस्रपृथक्त्वम् २६ वेसितं
वैशिकम्-शास्त्रम् ७२[१] सतसहस्सं शतसहस्रम् २६ वोच्छं
वक्ष्ये ६गा.४३ सतसहस्साई शतसहस्राणि पृ.४१ वोच्छेयः व्यवच्छेद गा.३९
टि.१२,पृ.४७टि.१ व्व
पृ.टि.३
सतसहस्से शतसहस्रम् ४७गा.६२ सती
स्मृतिः ६.गा.७७
शतम् सादि सादि पृ.३१टि.९ सत्त
सप्त १२०गा.८३ सउणरुयं शकुनरुतम् पृ.२९टि.२३
पृ.३९टि.४ ०सएहि शतैः
गा.४२ [सत्त] सप्त सक्के-देविंदे शक्रदेवेन्द्रः, शक्रदेवेन्द्रो- सत्तट्ठीए सप्तषष्टेः पपातः
सत्तमए
सप्तमकम् १२०गा.८६ जैनागमः पृ.३२टि.७ सत्तमे
सप्तमम् सगडभदियाओ शास्त्रविशेषः पृ.२९टि.१० सत्तविहे सप्तविधम् सगभदियाओ शास्त्रविशेषः ७२[१] सस्थ
शास्त्र १२०गा.८४ सगुत्तं सगोत्रम् पृ.६ टि.५ सद्द
शब्दः पृ.२४टि.२० सच्च
पृ.८टि.९ सद्दभडियाओ
शास्त्रविशेषः पृ.२९टि.१० सञ्चप्पवादस्स सत्यप्रवादस्य
शब्दम् ५८[२], पूर्वग्रन्थस्य १०९[२]
६०गा.७५,६०गा.७६ सञ्चप्पवादं सत्यप्रवादम्
सद्दाइ
शब्दादिः ५८[१-२] पूर्वग्रन्थः १०९[१]
शब्दः ५८[२], सच्छंद. स्वच्छन्द ७२[१]
पृ.२४टि.२० सजोगि० सयोगिन् ३५,३६
शब्दः पृ.२४टि.२६ सज्झाय स्वाध्याय ६गा.३८ सद्धिं
सार्धम् सज्झाय. स्वाध्याय २गा.६, सपक्ख० स्वपक्ष ७२[३]
२गा.११,६गा.३४ सपजवसियं सपर्यवसितम् ६१,७३, सट्टितंतं षष्टितन्त्रम् ७२[१]
७४,७५,७७,१२०गा.८३ सण्णक्खरं संज्ञाक्षरम् ६२, ६३ सपडिवक्खा सप्रतिपक्षाः १२० गा.८३ सण्णा
संज्ञा ६०गा.७७ सपुव्वावरणं सपूर्वापरेण ९२,१०८[२] सण्णि संज्ञी ६८,पृ.२८टि.९ सप्पे
४७गा.७१ सण्णिसुयस्स संज्ञिश्रुतस्य
सम्भाव-० सद्भाव ६गा.४०, सण्णिसुर्य संज्ञिश्रुतम् ६१,६७,७०
पृ.टि.३ सण्णी १२०गा.८३ सम
सम ६गा.३१,६०गा.७६ सण्णी
संज्ञी ७०, पृ.२८टि.९ । समएहिं समयैः-सिद्धान्तैः ७२[३]
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सत्य
सह
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सर्पः
संज्ञि
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