Book Title: Nandisutt and Anuogaddaraim
Author(s): Devvachak, Aryarakshit, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 666
________________ मूलसदो सुत्तकाइ तिभागे १२९ तिमहुरं २९८ तिय ३३६ त्रिक तिय संजोएणं त्रिकसंयोगेन तिरिक्खजोणिए तिर्यग्योनिकः २१६ [३,५], २५१ २३७ • तिरिक्खजोणिए तिर्यग्योनिकः २१६ [८-११] तिरिक्खजोणिओ तिर्यग्योनिकः पृ. १०२ टि. १ तिरिक्खजोणिय तिर्यग्योनिक ४९२[३] तिरिक्खजोणिय० तिर्यग्योनिक ३४६, ४९२[३] तिरियलोए तिरियलोयखे ताणुपुत्री ० तिरिक्खजोणि- तिर्यग्योनि का युष्कः याउए ० तिरिक्खजोणि- तिर्यग्योनिकानाम् याण ४२२[१] ० तिरिक्खजोणियाणं तिर्यग्योनि कानाम् ३५१[२,४],३८७[२-४], ४२२[२], पृ. १५६ टि. १ तिरियजोणिय तिर्यग्योनिक ३८२ तिरियलोए तिर्यग्लोकः १६१, १६२, ४७५ तिर्यग्लोके ४७५, ५३१ तिरियं • विलए तिलएण ० विलएण तिलकालएण ० तिलये तिविधे तिविहं बीयं परिसिहं - सहाणुकमो मूलसद्दो तिविहा सकयत्थो त्रिभागे त्रिमधुरम् Jain Education International २४४ तिर्यग्लोक क्षेत्रानुपूर्वी १६८ तिर्यक् पृ. १७६ टि. १० तिलकौ - तिलकनामक द्वीप समुद्रार्थे पृ. ९२ टि. २ तिलकेन ४४१ तिलकेन पृ. १७४ टि. ४ तिलकालकेन पृ. १७४ टि. २ तिलकौ - तिलकनामकद्वीप समुद्रार्थे १६९गा. १३ त्रिविधम् १९, पृ. १४४ टि. २ त्रिविधम् १६, २५, ३६, २२६गा. १८, ४५०, ४५४, ४९१, ५२५[१], पृ. ६३टि. ३ तिविहे तिविहे तिविहेण ० - तिब्वज्झवसाणे तीव्राध्यवसानः तिसमयि तिसमयद्वितीए तिसमयद्वितीया त्रिसमयस्थितिकः १४४, १८८ त्रिसमयस्थितिकम् ३६४ त्रिसमयस्थितिका पृ.९७ टि. १ तिसमयद्वितीयाओ त्रिसमयस्थितिकाः १८४, ૧૮૮ त्रिसमयस्थितिकः २०१[२] २९८ तिसमयठिती तिसरं तिसु तीत • तीत कालगणं ૨૦૨ सक्कत्थो सुतंकाइ त्रिविधा १३१, १३५, १६०, १६४, १६८, १७२, १७६, २०१[१], २०२[१], २०३[१], २०४[१], २०५[१], २०६[१], २०७[१], ४८४, ४८७, ५२१, ५२५[२], ५८४, ५९२, पृ. ७५ टि. ३ त्रिविधः ५८, ६१, ६५, ७८, ७९, २७३, ४७०, ४७५, ५३०[१], ५३४, ५६२, ५६५तः५६७, ५७०,५७१,५७८, ६०२, पृ. ६९ टि. ६, पृ. ७३ टि. १ त्रिविधम् २१७, ३३३, ३३७,३५६,३६१,३६९, ४२७,४३५,४३९,४४०, ४५९, ४६३, ४७३, ४९८तः ५०५, ५४०, ५५१ त्रिविधेन पृ. २०० टि. २ २८ For Private & Personal Use Only त्रिसरः त्रिषु ३५१[४] अतीत ५०, ४५०, ४५१, ४५४, ४५५ अतीतकालग्रहणम् ४५०, ४५१, ४५४, ४५५ www.jainelibrary.org

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