Book Title: Nandisutt and Anuogaddaraim
Author(s): Devvachak, Aryarakshit, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 616
________________ मूलसदो उवमिज्जति -उवयार ० -उवरागा उवरिमउवरिम गेवेज्ज० उवरिल्लम्म उवरिले उवरिले उवरिं - उबलक्खणं - उवलब्भइ बी परिसिहं - सहाणुकमो मूलस हो उवसमिए सक्कयत्थो सुकाइ उपमीयन्ते ४९२[२-३] उपचार २६२[६] गा. ७२ २४९ उवरिमउवरिम उपरितनोपरितन गेवेज्जए उवरिमगेवेज्जए उवसमिए उवसमिए उपरागाः उपरितनोपरितन २१ ग्रैवेयक [विमानेषु ] उवरिममज्झिम- उपरितनमध्यमगेवेज्ज • Jain Education International उवरिममज्झिमं- उपरितनमध्यम गेवेज्जए Categ गेवेज्ज० उवरि मट्ठिम गेवेज्जए ग्रैवेयकः २१६ [१७] उपरितनयैवेयकः ३९१[८] २१६[१७] ग्रैवेयक [विमानेषु ] उपरितने उपरितनः उपरितने उपरि ३९१[८] ग्रैवेयकः २१६[१७] उपरितनाधस्तन- ३९१ ग्रैवेयक [विमानेषु ] [C] उपरितनाधस्तन ग्रैवेयकः २१६ [१७] ३६६ २६०[१०] गा. ५२ उवलेवण० उपलेपन २१ ३३४गा. ९६ उववेया उपपेताः उवसम० उपशम २५२ -उवसम उपशम पृ. ११४ टि. ३ उवसमनिप्फण्णे उपशमनिष्पन्नः २३९, २४१, ३६६ ३६६ ४२३[१] उपलक्षणम् पृ. ७३ टि. १ उपलभ्यते २५२,२५३ औपशमिकः २०७[२], २३३, २३९, २४१ औपशमिकम् २५२तः २५९, पृ.१०९.टि.५-८ उवसमिएण उवसमिय उवसमिय - उवसमिय उवसमिया उसमे उसमे उवसंत० उवसंतकसाय छउमत्थ वीतरागे वसंतको हे उवसंतचरित्त मोहणिज्जे वसंतदंसण मोहणिज्जे वसंतदोसे उवसंत पेज्जे उवसंतमाणे उवसंत मोहणिजे वसंतलोभे वसंता उवसंपया उवासगदाओ उवासगदसा [धरे] उवेति - उति उforद्वा - उब्वेद For Private & Personal Use Only कत्थो औपशमिके सुत्काइ ११३[१], पृ. ८९.टि. ६ औपशमिकेन पृ. ११३ टि. २ औपशमिकः पृ. ११४ टि. ४ औपशमिक २५१, पृ. ११५ टि. ६, पृ. ११६टि. २ औपशमिक पृ. ११५टि. ३ उपशमिता २४१ २३९,२४० २४० २४१, २६२[१०]गा.८१ उपशमः उपशमेन उपशान्त उपशान्तकषाय छद्मस्थवीतरागः उपशान्तक्रोधः उपशान्तचारित्र उपशान्तदर्शन मोहनीयः उपशान्तद्वेषः उपशान्तप्रेमा उपशान्तमानः ३२१ मोहनीयः २४१ २४१ २४१ उपासकदशाः उपासकदशाधरः पृ. १०९ टि. ६ उपशान्तमोहनीयः २४१ उपशान्तलोभः २४१ उपैति उपयान्ति उद्विद्वाः उद्वेध २४१ २४१ २४१ उपशान्ताः २५३, २५५, २५७, २५९ उपसम्पदा - सामाचारीभेदः २०६[२]गा. १६, २०६[३] ५० २४७ ४९७ ३३४गा. ९८ ३३४गा. ९७ ३६० www.jainelibrary.org

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