Book Title: Nandisutt and Anuogaddaraim
Author(s): Devvachak, Aryarakshit, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 656
________________ ३६१ मूलसद्दो ठिती सक्यत्यो सुत्तंकाइ न ५७[४], १११[१३], १२३, १५०, १५५, पृ.६२टि.२, पृ.८९टि.७, पृ.१५२टि.७ __बीयं परिसिटुं-सहाणुक्कमो सक्कयस्थो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो स्थितिः ३८३[१.४], ण३८४[१], ३८५[१,५], ३८७[३-४],३८९,३९१ [२.४,७.९], पृ.१५३टि, ४,पृ.१५४टि.१, पृ.१६१ टि.१२ णउअंगे स्थिति २०० स्थितिकः १८४,१८८ स्थितिकम् स्थितिकाः १८४,१८८ णउयंगे स्थितिकानि १८८ स्थितम् ३५,५७[१],४८२ णओ णउए ठिती. *ठितीए *०ठितीए * ठितीयाओ *०ठिसीयाई ठियं गए नयुताङ्गम्-कालमान विशेषः पृ.१४९टि.४ नयुतम्-कालमान विशेषः ३६७,५३२ नयुताङ्गम्-कालमान विशेषः ३६७,५३२ नयः नयः ४९१,५२५[१], ६०६गा.१३८ नक्षत्र २८४गा.८५ नक्षत्रेषु २८५ नगर २६७,४७५ नगरम् ३०७ नगराणि २४९ नगरम् पृ.११२टि.. न्यग्रोधमण्डलम् २०५[२] नयुतम् पृ.९८टि.१ डहेजा दहेत् ३४३ [२], ३७२, ३७४, ३७९, ३८१, डोडिणि०(दे०) ब्राह्मणी णक्खत्त० •णक्खत्तेसु णगर णगरं ढक्किएणं (दे०) वृषभगजितेन पृ.१७४ टि.५ णगरा णगरो जग्गोहमंडले णजुए णज्जा যালরি णजिहिति गट्टी ज्ञायते ढंकिएणं(दे०) ढेकिएण(दे०) वृषभर्जितेन वृषभर्जितेन पृ.१७४ टि.५ णत्थि ज्ञायन्ते २६२[४]गा.६९ ज्ञास्यते (१)गान्धारग्रामस्य मूर्छना पृ.११८टि.१० नास्ति ३७३, ४२०[१], ४६२, ५२५[२-३], ५९९गा.१३० नदति पृ.११७टि.५-७ ४५१,४५५ नद्यः नद्यः-नदीनामकद्वीप समुद्रार्थे १६९गा.१३ नपुंसकवेदकः २३७ नपुंसकस्य २२६गा.२० न १५[५],३५,३८, १०६, १९१, १९६ [२-३], ३६६, ४४४, ४७६, ४८३ [५], ५०७ तः५०९, ५११, ५१३, ५१५,५१७,५४२,५८६, ५९९गा. १२९,५९९गा. १३२,६००,पृ.१५टि.३, पृ. ९० टि. ३,पृ. १५० टि.५, पृ.१५८ टि.१ । नदी णदति णदि गदीओ •णदीओ णपुंसगवेदए णपुंसगरस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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