Book Title: Nandisutt and Anuogaddaraim
Author(s): Devvachak, Aryarakshit, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 603
________________ अह ३०८ अणुओगहारसुत्तपरिसिट्ठाई मूलसद्दो सक्कयत्यो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो अथ २०,२६०[३]गा.२९ महिनकुलम् महउत्तरायता अधउत्तरायता -अहिय गान्धारग्रामस्य अहिय० मूर्छना२६०[९]गा.४२ -अहियं अहक्खाय० यथाख्यात ४७२ अहिया अहक्खायचरित्त- यथाख्यातचारित्र अहिः गुणप्पमागे गुणप्रमाणम् ४७२ अहीणक्खरं अहपंडरे यथापाण्डुरे पृ.६३टि.८ महेऊ महम० अधम ३३४गा.९७ अहेलोए अहम्मपएसो अधर्मास्तिकाय अहेसत्तमा प्रदेशः ४७६ अहेसत्तमाए महम्मे अधर्मः-अधर्मास्तिकायः अहो! भहव अथवा ४१८[२] महवण अथवा पृ.१७० अहोनिसस्स टि.१२.१३ अहोनिसिस्स महवणं अथवा ४२३[१], अहोरत्त ४२६[२] अहोरत्ता भहवा अथवा ४०, ४९, ६५, अहोरत्ते ९२, १०१,१०३, ११८, १२०, १३५, १४७, महोलोए १७५, २०२[१], २१३, महोलोयखेत्ता- २१६[१], २७७, २७८, __णुपुवी ४७०, ५१०तः५१९, ५३० [२], पृ.९०टि.३, अंकारंत पृ.९१टि.२ -अंकिय अहं अहम् २६१गा.५९ अंगपविट्रस्स महापंडरे यथापाण्डुरे पृ.६३टि.८ अंगबाहिरस्स -अहिकार अधिकार ४८५,५५२, अंगसंखा ५६३,५८५,५८९,५९८, भंग पृ.७५टि.३ -अंग अहिगया अधिगताः ६०५ मंगाई अहिगरणिसंठाण- अधिकरणिसंस्थान -अंगिल्लकसंठिए __संस्थितम् ३५८ -अहिगार अधिकार ५९,४७४, अंगुल. ५४१ •-अहिगारेणं अधिकारेण पृ.१९५टि.१ सक्कयत्यो सुत्तंकाइ अहिनकुलम् २९५ अधिक ३७२ अधिक ३३४गा.९७ अधिकम् ३९० [२-३] अधिकाः ३३४गा.९८ अहिः २९५ अहीनाक्षरम् १४ अहेतुः ५२५[३] अधोलोकः पृ.१८१टि.१० अधःसप्तमी पृ.९१टि.६ अधःसप्तम्याः पृ.१४० टि.१,पृ.१५३टि.४ अहो! १७,३७,४८५, ५४१ अहर्निशस्य पृ.६५टि.६ अहर्निशस्य २९गा.३ अहोरात्र ३६५गा.१०३ अहोरात्राः ३६७ अहोरात्रः २०२[२], ३६७,५३२ अधोलोके १६१, १६२ अधोलोकक्षेत्रानुपूर्वी १६४ २२६गा.२० अंकारान्तम् २२६गा.२३ अङ्कित ४९२[२]गा.११९ अङ्गप्रविष्टस्य अङ्गबाह्यस्य अङ्गसङ्ख्या अङ्गम् अङ्गम् अङ्गानि अग्रिमक-अग्रिम पृ.१९५ टि.१ अङ्गुल ४१८[२],४१९ [२],४२१[१],४२२ [२],४२३[१],४२६[२] ४९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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