Book Title: Nalvilasnatakam
Author(s): Ramchandrasuri
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 183
________________ १४० नलविलासे तापसः- (सादरमिव) तर्हि सुतरामतिथयः स्थ। तदावेदय किमातिथेयमनुतिष्ठामि? राजा- बहुदृश्वानस्तपस्विनस्तत् कथयत विदर्भपथाभिज्ञानानि। एतदेव नः साम्प्रतमातिथेयम्। तापस:- किं तत्र वः? राजा- श्वशुरकुलं तत्र नः। तापसः- तत्र वः सधर्मचारिणी? राजा- अत्र नः सधर्मचारिणी। तापस:- (सविचिकित्समिव) स्वीसङ्गनिगडितो भवान्नार्हः कामचारस्य। अपि च राज्यभ्रंशः स्त्रीसङ्गश्चेति महती व्यसनपरम्परा। राजा- (स्वगतम्) सत्यमाह तापसः भुजमात्रपरिच्छदैर्यत्रैव तत्रैव यथैव तथैव स्वैरमास्यते। स्त्रीबद्धानां कुतः कामचारः? तापस- (सम्मान करते हुए की तरह) तब तो (आप) श्रेष्ठ अभ्यागत हैं। इसलिए कहिये आपका क्या आतिथ्य सत्कार करूँ? राजा- तपस्वीजन बहुत अधिक जानने वाले होते हैं, अत: विदर्भदेश को जाने वाला मार्ग बताइये। इस समय हमारे लिए आपका यही आतिथ्यसत्कार है। तापस- वहाँ आपका क्या है? राजा- वह हमारे श्वशुर का घर है। तापस- तो, वहाँ आपकी पत्नी है? राजा- हमारी पत्नी यहीं है। तापस- (आश्चर्यचकित हये की तरह) स्त्री का साथ होने के कारण आप इच्छानुसार चलने के योग्य नहीं है। और भी, राज्य के नाश हो जाने पर स्त्री का साथ में रहना तो और भी बड़ी विपत्ति है। राजा- (अपने मन में) तपस्वी ने बिलकुल ठीक कहा। हाथ मात्र ही परिजन है जिसका ऐसा व्यक्ति तो जहाँ तहाँ जैसे-तैसे अपनी इच्छानुसार (गमन कर सकता) है। पर स्त्री के साथ में रहने पर स्वेच्छाधारी होना कहाँ से (सम्भव हो सकता है)? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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