Book Title: Nalvilasnatakam
Author(s): Ramchandrasuri
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 237
________________ १९४ नलविलासे कलहंसः- देव! निषधाधिपते! तेऽमी चित्रसेन-मेषमुख-कोष्ठकाः, यान् मत्तमयूरोद्यानस्थितिर्देवो लेखे दृष्टवान्। राजा- निषधापते! परिणतवयसो वयं धर्मकर्मार्हाः। तद् गृहाणेदमस्मदीयं विदर्भाधिराज्यम्। .. नल:- देव! अहमात्मीयमेव राज्यं कपटकैतवहारितमादास्ये। पुष्पवती- (१) वत्स(च्छ)! एसा दमयन्ती पुणो वि तुह समप्पिदा। ता जं ते पडिहादि तं करिज्जासु। नल:- अहं देव्या दमयन्त्या पतिव्रताव्रतेनैव क्रीतस्तदतः परं मामनुकूलयन्ती देवी मल्लिकां धवलयति, घनसारं सुरभयति, मृगाई शिशिरयति। कलहंस:- किमतः परं प्रियतमाधीयते देवस्य? नल:- कलहंस! अतः परमपि प्रियमस्ति? त्वयैव तावद् देवी प्रथममस्मासु परमानुरागमानीता। भवतैव कुसुमाकरोद्याने संघटिता। कलहंस- देव! निषधदेश के स्वामि! ये वही चित्रसेन, मेषमुख और कोष्ठक हैं, जिन्हें महाराज ने मत्तमयूर वाले उद्यान में विद्यमान लेख में देखा था। राजा- निषधदेश के स्वामि! अवस्था के अनुकूल हम धार्मिक अनुष्ठान के योग्य हो गये हैं। अत: हमारे इस विदर्भराज्य को ग्रहण करें। नल- द्यूत-क्रीड़ा में हार गये अपने राज्य को ही मैं ग्रहण करूँगा। ____ पुष्पवती- पुत्र! फिर भी, यह दमयन्ती तुम्हें समर्पित करती हूँ। अत: तुम्हें जो उचित प्रतीत हो वही करना। नल- मैं तो देवी दमयन्ती के पातिव्रत धर्म से ही खरीद लिया गया हूँ इसलिए मुझे अत्यन्त अनुकूल करती हुई चमेली पुष्प को स्वच्छ बना रही है, कर्पूर को सुगन्धित करती, चन्द्रमा को शीतल करती है। कलहंस- इसके अतिरिक्त महाराज का कौन सा प्रिय किया जाय। नल- कलहंस! इसके अतिरिक्त भी प्रिय वस्तु है? आप ही ने देवी का अत्यधिक स्नेह हमारे प्रति किया। आपने ही कुसुमाकर उद्यान में मिलाया। आपने (१) वत्स! एषा दमयन्ती पुनरपि तुभ्यं समर्पिता। ततो यत् ते प्रतिभाति तत् कुर्याः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 235 236 237 238 239 240 241 242