Book Title: Nalvilasnatakam
Author(s): Ramchandrasuri
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 238
________________ सप्तमोऽङ्कः १९५ त्वमेवास्मान् नटकपटधारी ज्ञातवान् । किमपरं त्वमेवास्य दमयन्तीसङ्घटनानाटकस्य सूत्रधारः । कलहंसः - तथापीदमाशास्यते दुरोदरकलङ्कतः कृतविराम चन्द्रोज्ज्वला - मवाप्य निजसम्पदं पदमचिन्त्यशर्मश्रियः । यशोभिरनिशं दिशः कुमुदहासभासः सृजनजातगणनाः समाः परमतः स्वतन्त्रो भव । । १४ । । ( इति निष्क्रान्ताः सर्वे) ।। सप्तमोऽङ्कः ।। ।। इति नलविलासनाटकम् । कृतिरियं रामचन्द्रस्यः ॥ । ही नट के कपट वेष को धारण करने वाले हमको पहचाना। अधिक क्या, आप ही दमयन्ती समागम रूपी नाटक के सूत्रधार हैं। कलहंस - फिर भी यह आशीर्वाद देता हूँ द्यूत-क्रीड़ा के कलङ्क से विरत हो चन्द्रमा के सदृश निर्मल अपनी सम्पत्ति (राज्य) को प्राप्त करके अनिर्वचनीय प्रमोदलक्ष्मी के पद को प्राप्त करें। (तथा) कुमुद - पुष्पवत् अपने यश से निरन्तर दिशाओं को स्वच्छ बनाते हुये अगण्य वर्षों तक स्वतन्त्र होवें ।। १४ ।। ( यह कहकर सभी निकल जाते हैं) ।। सप्तम अङ्क समाप्त । । इस प्रकार रामचन्द्रसूरि की कृति नलविलास नाटक का हिन्दी अनुवाद समाप्त हुआ। १. क. संवत् १४८४ वर्षे भाद्रसुदि १० लिखितम् । ख. ग. नाटकं समाप्तं । छ । कृतिरियं श्रीहेमचंद्रसूरिशिष्य श्रीरामचंद्रसूरीणां । । छ । । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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