Book Title: Nalvilasnatakam
Author(s): Ramchandrasuri
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 229
________________ १८६ . नलविलासे नल:- (स्वगतम्) उक्तं भुजगरूपधारिणा तातेन 'यदि ते स्वरूपेण प्रयोजनं भवति तदा मामनुस्मरेः'। (पटं प्रावृत्य स्मरणं नाटयति। पुनरात्मानं विलोक्य) कथं नल एवास्मि जातः। दमयन्ती-(१) भयवं हुयासण! नमो दे। भयवंतो लोकपाला! कधेहिं एदं मह चरिदं परलोगगयस्स अज्जउत्तस्स। (नेपथ्ये) हा वत्से!क्व मामेकाकिनं चरमे वयसि परित्यज्य प्रयासि? (२) हा हरिणनयणे! मयंकवयणे! सिरीससोमाले! वत्से! किं अत्तणो मरणेण भीमरहं मारेसि? दमयन्ती- (आकर्ण्य) (३) नूणं मं वारिदुं तादो अंबा य समागच्छदि, ता लहुं पविसेमि। (चितां प्रदक्षिणीकृत्याधिरोदुमिच्छति) नल- (अपने मन में) सर्परूप को धारण करने वाले पिता ने कहा था 'यदि तुम्हें अपने रूप की आवश्यकता हो; तो मेरा स्मरण करना। (कपड़े से ढ़ककर स्मरण करने का अभिनय करता है। पुन: अपने आपको देखकर) मैं तो नल रूप वाला ही हो गया हूँ। दमयन्ती- भगवन् अग्नि! नमस्कार करती हूँ। भगवन् लोकपालो! मेरे इस वृत्तान्त को परलोक गये आर्यपुत्र से कहो। (नेपथ्य में) हा पुत्रि! वृद्धा अवस्था में मुझे अकेली छोड़कर कहाँ जाती हो? हा मृगाक्षि! चन्द्रमुखि! पुष्प सदृश कोमल अङ्गोवाली पुत्रि! अपनी मृत्यु के द्वारा अपने पिता भीमरथ को क्यों मारती हो? दमयन्ती- (सुन करके) निश्चय ही मुझे रोकने के लिये पिता और माता आ रहे हैं, तो शीघ्र प्रवेश करती हूँ (चिता की प्रदक्षिणा करके) चिता में प्रवेश करना चाहती है)। (१) भगवन् हुताशन! नमस्ते। भगवन्तो लोकपालाः! कथयतैतन्मम चरितं परलोकगतायार्यपुत्राय। ___ (२) हा! हरिणनयने! मृगाङ्कवदने! शिरीषसुकुमारे! वत्से! किमात्मनो मरणेन भीमरथं मारयसि? (३) नूनं मां वारयितुं तातोऽम्बा च समागच्छति, तल्लघु प्रविशामि। १. ख. ग. भुजंग। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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