Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 2
________________ मेघकुमार की आत्मकथा मगध सम्राट श्रेणिक के राजपरिवार का भगवान महावीर के धर्म संघ के साथ घनिष्ट सम्पर्क रहा है। वे स्वयं तथा उनकी पटरानी चेलना भगवान महावीर के परम भक्त थे। उनका ज्येष्ठ पुत्र सम्राट अजातशत्रु कूणिक भी अपने राज्यकाल में भगवान महावीर का परम उपासक रहा है। श्रेणिक राजा की अनेक रानियों, महामंत्री अभयकुमार तथा मेघकुमार, नंदीषेण आदि द्वारा भगवान के धर्म संघ में श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर विविध प्रकार की तपःसाधना करने का वर्णन जैन आगमों में उपलब्ध हैं। ___ मेघकुमार के प्रंसग का वर्णन ज्ञातासूत्र के प्रथम अध्ययन में बड़े विस्तार के साथ मिलता है। इस प्रसंग में प्रव्रज्या ग्रहण के पश्चात् उसी रात मेघकुमार के मन में उपजा अन्तर्द्वन्द्व, संयम जीवन में आने वाले कष्टों की कल्पना से जन्मी अधीरता और भगवान महावीर द्वारा मेघकुमार को उद्बोधित करने के लिए उसके पूर्व जीवन की घटनाओं का उद्घाटन। एक नन्हे से जीव की दया अनुकम्पा के लिए सहन किया हुआ कष्ट, और फलस्वरूप पशु जीवन त्यागकर । मानव जीवन की प्राप्ति तक का अन्तर-स्पर्शी वर्णन आज भी पाठक और श्रोता के हृदय को झकझोर देता है। ___भगवान के श्रीमुख से सुनी आत्म-कथा से मेघकुमार का हृदय जागृत हो जाता है, उसके शिथिल पड़े संकल्प पुनः | सुदृढ़ हो जाते हैं और वह अधीरता, उद्वेग और अन्तर्द्वन्दों को त्यागकर समग्र श्रद्धा के साथ संयम में स्थिर होता है। भगवान के श्रीचरणों में स्वयं को समर्पित कर जीवन भर के लिए संकल्प बद्ध होता है। मेघकुमार की यह आत्म-कथा युग-युग तक करुणा-अनुकम्पा, कष्ट सहिष्णुता और अधीरता त्यागकर धीरता का सन्देश देती रहेगी। सर्वज्ञ प्रभु महावीर का यह उद्बोधन आत्म-विस्मरण में डूबी आत्मा को आत्म-स्मरण कराकर संयम में स्थिर करने में परम सहायक बनेगी। और स्वयं कष्ट सहकर अनुकम्पा दया की शिक्षा देती रहेगी। साथ ही इस घटना से जीव-दया का महान फल भी सूचित होता है। पू. अध्यात्मयोगी श्रीमद् आचार्य विजय कलापूर्ण सूरीश्वर जी म. सा. के विद्वान शिष्यरल मुनिश्री पूर्णचन्द्रविजय जी ने ज्ञातासूत्र प्रथम अध्ययन के आधार पर मेघकुमार की आत्म-कथा का सुन्दर शब्दों में शब्द चित्र तैयार किया है, इसके लिए हम आपश्री के कृतज्ञ हैं। -महोपाध्याय विनयसागर -श्रीचन्द सुराना 'सरस' लेखक : मुनिश्री पूर्णचन्द्र विजय जी प्रबन्ध सम्पादक : संजय सुराना सम्पादक : श्रीचन्द सुराना 'सरस' चित्रण : श्यामल मित्र प्रकाशक दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने एम. जी. रोड, आगरा-282002 दूरभाष : 351165, 51789 श्री देवेन्द्र राज मेहता सचिव, प्राकृत भारती अकादमी 3826, यती श्याम लाल जी का उपाश्रय मोती सिंह भोमियो का रास्ता, जयपुर-302003 © संजय सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन, ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282 002 भाष : (0562) 351165, 51789 ग्राफिक्स आर्ट प्रेस मथुरा द्वारा मुद्रित। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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