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आमुख
प्रत्येक धर्म का अपना स्वतंत्र साध्य होता है और उसकी सिद्धि के लिए उसी के अनुकूल साधना पद्धति होती है । महर्षि पतंजलि ने साख्यदर्शन की साधना-पद्धति को व्यवस्थित रूप दिया और योग नाम से एक स्वतंत्र साधना-पद्धति विकसित हो गई। अब हर साधना-पद्धति योग नाम से अभिहित होती है। योग स्वयंसिद्ध नाम है । दूसरे धर्मो की साधनापद्धति की जैन योग, बौद्ध योग- इस प्रकार पहचान की जाती है। किन्तु जैनो और बौद्धो की साधना-पद्धति की स्वतंत्र संज्ञा है । जैनो की साधना-पद्धति को मोक्षमार्ग और बौद्धो की साधना पद्धति को विशुद्धिमार्ग कहा जाता है ।
उपनिषद्-साहित्य मे षडग योग का उल्लेख मिलता है ' - प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, तर्क और समाधि ।
पातजल योगदर्शन मे अष्टांग योग का उल्लेख है – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ।
बौद्ध साधना-पद्धति मे आर्य अष्टांगिक मार्ग का उल्लेख है - सम्यग्दृष्टि, सम्यक्संकल्प, सम्यग्वाणी, सम्यग्कर्म, सम्यग्आजीविका, सम्यग्व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक्समाधि ।
मोक्षमार्ग चतुरग है – ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ।
१ मैत्रायणी उपनिषद्, ६ / १८
प्राणायाम. प्रत्याहारो ध्यान धारणा तर्कः समाधि पडग इत्युच्यते योग | पातजल योग-दर्शन, २ / २६
यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावगानि ।
३. सयुक्तनिकाय, ५/१०
४ उत्तराध्ययन, २८/२