Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 11
________________ तो पछी हे पुत्र ! आपणुं माणसनुं शरीर तो चामडीथी मढेलु होई रूडु लागे छे पण शरीर तो तमाम आपदाओगें स्थान छे. तो ए देवोनी पासे आपणा जेवा-तमारा जेवाना दुःखनो वळी शो हिसाब होय ? २. माटे हवे तुं पूर्वभवतुं स्मरण करवू मूकी दे अने वर्तमानकाळमां वर्तन कर. भूतकाळ अने भविष्यकाळनी चिंताओने लीधे शरीर पण सीदाय छे-क्षीण थाय छे. ३. ___ आवी परिस्थिति छे माटे ज आ संसार खरेखर असार छे. संसारमा जन्म, मरण, जरा, रोग अने शोक वगैरेनां दुःखो भरेलां छे. ४. विरहनी महावेदनाने लीधे घायल थयेल पोताना पुत्र मंखने आ प्रमाणे जुदी जुदी युक्तिओ तथा हेतुओ द्वारा समजावी केशवे केमे करीने मांड मांड घरभेगो तो कर्यो. ५. ____ हवे मंख धरमां आव्यो पण खावा पीवानुं छोडी दीधुं, तेनुं मन शून्य थई गयुं, आंखो तो जमीन तरफ ज खोडाई गई, अने महायोगीनी जेम तेणे बीजी बीजी तमाम प्रवृत्तिओनु चिंतन छोडी दीg. पोताना जीवनने पण तणखलानी तोले समजवा लाग्यो. तेनी आवी दशा जोईने चित्तमां संताप पामेला तेना स्वजनोए 'आ क्यांय छळी जवाथी कदाच आवी हालतमां आवी पडयो होय' एवी शंकाने लीधे विशेष आदर साथे तेनो उपचार कराववा माटे [पृ० ४] मंत्रतंत्रवादीओने बोलाव्या. तेमने बताव्यो, तेओए उपचारो पण कर्या छतां मंखनी हालतमां थोडो पण फेर न पडयो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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