Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 10
________________ वात कहे. पछी मंखे पोताना पिताने तेनो प्रश्न सांभळीने लांबा नीसासा मूकतां का के, हे पिताजी, उपर वर्णवेल चक्रवाकना जोडाने जोईने मने मारो पूर्वभव पृ० ३] सांभळी आव्यो-मने जातिस्मरण ज्ञान थयु. ए ज्ञान वडे मारो आगलो भव मने एकदम प्रत्यक्ष थयो. में जाण्यु के हुँ आगला जनममां मानससरोवरमां खरेखर आवी ज रीते चक्रवाकना जोडाना रूपमा हतो. ते वखते त्यां एक भीले मारा उपर बाण छोड्यु, तेथी घायल थयो अने घानी पीडाने लीधे तरफडतो मने जोतां ज तत्क्षण विरह थवाथी हृदय तूटी जतां मारी चक्रवाकी मरी गई अने तेनी पाछळ हुँ पण मरी गयो. मर्या पछी तमारे घरे हुं पुत्र रूपे अवतों छं. आ बनाव जोइने मने मारी चिरसंगिनी अने दृढ प्रणयवाळी चक्रवाकी सांभळी आवी, तेथी हवे हुं तेनो विरह सही शकुं तेम नथी. एटले ए चक्रवाकी ज्यां होय त्यां पहोंच्या विना मने जरा पण चेन पडवानुं नथी. केशवे मंखने कयु के, हे पुत्र ! वीती गयेला जनमर्नु दुःख संभाळवाथी हवे कशुं ज वळवानुं नथी. ए मोबळेलो विधाता ज ऐवो ईर्ष्याळु छे के जो कोई मनुष्य प्रियनो संयोग पामीने लांबा काळ सुधी सुख भोगवतो तेना जोवामां आवे तो ते तेने सहन करी शकतो नथी, एवो तेनो स्वभाव छे. वळी, पोतानी प्रिय प्रणयिनीनो विरह थतां दुःखनी आगथी संताप पामेला देवो पण गांडानी जेम अने मूर्छित थयेलानी जेम पोताना जीवनने गमे तेम करीने गुमावे छे. १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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