Book Title: Mahabal Malayasundari Diwakar Chitrakatha 059 Author(s): Sanmatimuni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 2
________________ 1 महाबल मलया सन्दरी III किसी अनुभवी की उक्ति है जो ताकू कांटा बुवै ताहि बोव तू फूल । तुझे फूल का फूल है, वाकू है तिरशूल।। . संसार का नियम है बुराई करने पर वह बुराई सौ गुनी लौटकर आती है और भलाई करने पर भलाई भी हजार गुनी बनकर आती है। आश्चर्य तो यह है कि इस सत्य-तथ्य को समझते हुए भी मानव दूसरों के लिए गड्ढा खोदता रहता है। वैर, द्वेष, ईर्ष्या आदि क्षुद्र भावों के वश मानव दूसरों का अनिष्ट करने का दुश्चक्र चलाता रहता है। किन्तु अन्त में परिणाम होता है जो शूल दूसरों के लिए बिछाये, वे उसी के पाँवों में चुभते हैं और त्रिशल की तरह उसके हृदय को भेदते-वेधते-चीरते रहते हैं। वीरधवल राजा की रानी चम्पकमाला बड़ी शीलवती धर्मपरायणा थी, तो दूसरी रानी कनकमाला कठोर स्वभाव की ईर्ष्यालु और नु और सदा दूसरों का अहित करने की दुर्भावाना में जलती थी। चम्पकमाला की पुत्री मलया, सुन्दरी भी अपनी माँ के समान शील, धर्म, सहिष्णुता आदि गुणों की जीवंत मूर्ति थी। राजा सूरपाल का पुत्र 'मलयकुमार' एक धर्मनिष्ठ, सदाचारी और परोपकारी वीर युवक था। महाबल थ में विमाता कनकमाला ने पग-पग पर उसे हर प्रकार से दःख देने और कष्टों की आग में जलाने का प्रयत्न किया। किन्तु महाबल मलया जैसे धर्मनिष्ठ सदाचारी सत्पुरुषों ने उन शूलों को भी फूलों । में बदल दिया। जीवन में आये तूफानी झंझावतों का साहस और सूझबूझ के साथ सामना किया। विमाता द्वारा किये गये सभी अपराध क्षमाकर महानता का परिचय दिया। एक ने नीचता करने में कमी नहीं रखी तो दूजे ने उदारता का परिचय देकर अपनी महानता को स्थापित किया। अन्त में महाबल-मलया सुन्दरी की नीति और धार्मिकता की जीत हुई। ____ इस अत्यन्त रोचक और प्रसिद्ध पौराणिक कथा के आधार पर श्रमण सन्मति मुनि जी म. 'साहिल' ने सरल, सहज भाषा में यह शब्दांकन किया है। मुनिश्री स्थानकवासी समाज के बहुश्रुत विद्वान् युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म. सा. के शिष्य श्री विनय मुनि जी म. के शिष्य हैं। आप एक कवि, गीतकार, प्रभावशाली वक्ता और क्रांतिकारी विचारक संत हैं। -महोपाध्याय विनय सागर -श्रीचन्द सुराना 'सरस' - लेखक : श्रमण सन्मति मुनि जी म. 'साहिल' - सम्पादक: प्रकाशन प्रबंधक : चित्रांकन : श्रीचन्द सुराना 'सरस' । संजय सुराना सत्य प्रकाश तिवारी प्रकाशक श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282 002. फोन : 0562-2851165 सचिव, प्राकृत भारती अकादमी,जयपुर 13-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302 017. फोन : 2524828, 2561876, 2524827 अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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